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________________ मैना सुन्दरीका थोपालसे ब्याह | [ ३५ मंत्रीगण राजा के क्रोध भरे वचन सुनकर बोले हे महाराजा ! हम लोग निर्भय होकर प्रार्थना करते हैं । हम लोगोको दण्डका कुछ भी भय नहीं होता, क्योंकि हमारे फुलकी वह रीति है कि स्वामीका हित जिस प्रकार होता देखें, उसी प्रकार कार्य करें, और अयोग्य प्रवृत्तिको यथाशक्ति रोकनेका पूर्ण प्रयत्न करें ! यदि हर लोग ऐसा न करें, तो हमारे कुलकी रीति तथा धर्म जाता है और हम कर्तव्य से च्युत हो जाते हैं । इसी प्रकार से राजाओंका भी यही स्वभाव होता है कि उनको जब कि कोइ विशेष कार्य करना होता है, तब मंत्रियोंको बुलाकर उनसे मंत्र करते हैं और सब मिलकर जो राय अधिक प्रशंसनीय होता है, उसीके अनुसार कार्य करते हैं। यही रीति परम्परासे चली आती है इसीसे हम लोग बारम्बार कहते हैं। इसमें हमारा कुछ भी दोष नहीं है । स्वामीक कार्य करने में हमें जीने और मरनेका कुछ भी संशय नहीं रहता है । हे राजन् ! विचार कीजिये, और हठका परित्याग कीजिये । इस प्रकार मंत्रियोंने यद्यपि बहुत समझाया, परन्तु राजा के वित्त पर एक भो बात न जमी, जैसे चिकने घड़ेपर पानी नहीं ठहरता है । वह निःशंक होकर बोला- अरे मंत्रियों ! अब चतुराई करने का समय नहीं है । आप लोग शोध ही मेरी आज्ञानुसार विवाह को तयारी करो, मैना सुन्दरीके वरकी शोभा (व्याहका एक नेग है जो अगवानी के समय एक सुन्दर बैल सजाकर उस पर बहुत सुवर्ण मुद्रायें तथा अन्य रत्नादि लादकर वरको भेंट स्वरुप देते हैं) पहुँचावो | तत्र लाचार होकर मंत्री अपनासा मुह लेकर उठ खड़े हुए, और आज्ञानुसार विवाहोत्सवका प्रवन्ध करने लगे, सो ठाक ही है । कहा है -
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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