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'श्रीपाल चरित्र |
अनुसार चलते थे, परन्तु आज क्या हो गया है ? जो ऐसो रूप और गुणों को खानि पुत्रोको एक कोढ़ी पुरुष को दे रहे हो ? हम लोग आपसे सत्य और आग्रहपूर्वक कहते हैं कि इसके बदले आपको बहुत दुःख उठाना पड़ेगा इसलिए आप हठ छोड़ दाजिये ।
यह सुनकर राजा कहने लगा हे बुद्धिमान मंत्रियों ! कुम बिना विचारे हा क्यों व्यर्थ बकवाद करते हो ? मैं जो तिलक कर चुका हूं, क्या वह भी कोइ फिरा सकता है ? नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता। जो कह चुका हूँ, वही होगा । राजाओं के वचन नहीं जाते, चाहे प्राण भले ही चले जांय । कहा है
सिंह लगन कदलो फलन, नृपति वचन इकवार | तिरिया तेल हमीर हठ, घड़े न दूजी बार। " मंत्रियोंने फिर भी साहसकर कहा---
हे राजा ! आपका कुल अति निर्मल है उसकों आप कलंकित न करें। यह दुर्लभ मनुष्य जन्म पाकर व्यर्थ अपयश लेना ठीक नहीं है । आपके जैसा निद्य कार्य कोई अविवेकी 'भी नहीं करेगा । इसलिये ऐसा नोच कृत्य आपको कदापि काल नहीं करना चाहिए। यद्यपि मंत्रियों का कहना राजाके हितके ही लिये था, लेकिन जैसे पित्त ज्वरवालेको मिठाई भी कड़वा मालूम होती है, उसी प्रकार हठ रोगसे पीडित तीव्र कषायके उदयमें राजाको मंत्रियोंके वचन बहुत ही बुरे मालुम हुए | वह क्रोध से भरे हुए लालर नेत्र करके बोला बस, बस, बहुत हुआ, चुप रहो ! अब तक मैंने तुम्हारा मान रखा, और कुछ भी नहीं कहा । मेरे मनमें कुछ और है और तुम लोग कुछ और हो कहते हो । सेवकका काम है कि स्वामीको इच्छानुसार प्रवर्ते । यदि अब तुम लोग कुछ भी विरूद्ध बोलोगे, तो दण्डके भागी होवोगे ।
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