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________________ मौनासुन्दरीका श्रीपालसे ब्याह । [३३ आपको बुद्धि कहां चली गयी, जो यह अनर्थ करने पर उद्यत्त हो गये ? मालूम होता है कि अब राज्यका का अशुभ होनहार है । ऐसा कहकर बिना ही द्रव्य लिए यह ब्राह्मण घरको चला गया । अब क्या था, सब नगर में तथा आसपास चारो ओर सोते, बैटते, खाते, पीते हर समय यही कथा होने लगी। जो कोई इस बात को सुनता था, वहो राजाको बुद्धि को धिक्कारता था । ___ जब विवाह कार्य आरम्भ होने लगा, तब पुनः मंत्रियोंने आकर निवेदन किया कि हे राजन ! देखो अनीति होती है, इसका परिपाक अच्छा नहीं है । एक अबला बालिका के साथ ऐसा अनर्थ करना सर्वथा अनुचित है । आप प्रजापालक है, फिर तो यह आपकी तनुजा है । देखिये, विचारिये जो राजा मंत्रियोंके वचन पर विचार नहीं करते हैं, जो सुभट रण त्याग कर भागते हैं, जो शूर. वीर क्रोध छोड़ देते हैं, जो साधु क्रोध धारण करते हैं जो दाता विवेकहीन होते हैं, जो साधु वाद करते हैं, जो रोगी उदास रहते हैं, जो चोर अपना भेद बता देते हैं, जो रोगी स्वादके ग्राही होते हैं, जो साधु उधार लेन देन करते हैं, जो वेश्या व्रत लेकर बैठती है, जो स्त्रियां स्वतन्त्र हो घरोंधर डोलती हैं, जो पात्र क्रिया रहित होते हैं, और जो तपस्वी लोभी होते हैं वह अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। इसलिए बहुत क्या कहा जाय ? अब भी चेन जाओ और पुत्रीको दारूण दुःखमें डालने से बचाओ । हे महाराज ! अबतक तो आप सदैव मंत्र (विचार) के
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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