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________________ ३२ 1 श्रीपाल चरित्र । पुरुष आपके (पिठाके) समान हैं। यधपि मनासुन्दरोने के वचन प्रसन्न मनसे कहे थे परन्तु राजा को नहीं रूचे । वह बोला-पुत्रो! तू बहुत हो हठोली है । तेरा स्वभाव दुष्ट है, तू विचारशून्य है, अब भो हठ छोड़ दे, परन्तु मैना- . मुन्दगोरे हो नौ प्रकारको ही न लिया था । वह बोली-पिताजी ! आप चिन्ता न करें, कर्मको गति विचित्र है । शुभ उदयसे अनिष्ट वस्तु इष्टरूप, और अशुभ उदयसे इष्ट भी अनिष्टरूप परमणतो है, इसलिये अब जो कुछ होना था मोहो गया, इसमें कुछ सोचने विचारनेको आवश्यकता नहीं है। जब राजाने देखा कि अब तो पुत्रो भो हट पकड़ गई है, तव लाचार होकर ज्योतिषिको बलाया। और विवाह का उत्तम मुहूर्त पूछने लगी । तब ज्योतिषीने लग्न विचारकर कहा-नरनाथ ! आजका मुहूर्त बहुत ही अच्छा है । ऐसा मुहूर्त फिर बीसों वर्षों तक भी नहीं बनेगा । क्योंकि सूर्य, चन्द्र और गुरु ये तीनों वर और कन्याके लिये बहुत ही अच्छे हैं । ऐसा उत्तम और निकट मूहूर्त सुनकर राजा प्रसन्न हुआ । और विप्रको दक्षिणा देने लगा-तब उसने हाथ लम्बा नहीं किया, अर्थात् दान, नहीं लिया । जब राजाने इसका कारण पूछा, तो वह वर्तमान वरकी स्थिति पर शोक प्रकाशित करके कहने लगा हे राजन ! संसारमें प्राणी कर्मसे बांधा हुआ है । आपका इसमें क्या दोष है ? कन्या का भाग्य ही ऐसा है जो रूप और गुणको खान होते हुए भी कोढ़ी के साथ भ्याही जा रही है । हे राजा ! आपको ही विचार करना चाहिये था । आप ऐसे चतुर, न्यायीं और नीतिवान होते हुए भी केसे भूल गये?
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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