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________________ मैनासुन्दरीका बोपाल से ब्याह 1 [ ३१ - बहुत पछतायेंगे | इसलिए सब काम सोच समझकर हीं - करना चाहिए । यह सुनकर राजाने कहा- मंत्रियों ! तुम्हारा बारंबार "कहना उचित नहीं है । मैं कदापि तुम्हारी बात नहीं मानूंगा । क्योंकि मैनासुन्दरीके वचन मुझे तीरके समान चुभ रहे हैं, इसलिये इससे बढकर उसके कर्मको परीक्षा करनेका अवसर दूसरा न मिलेगा | बस जो होना था सो हो गया । अब मेरे वचनको फिरानेका किसकी ताकत है ऐसा कहकर तुरन्त ही गजा पहुपाल राजा श्रीपाल कोढीको साथ लेकर स्वस्थानकी ओर विहार किया। कुछ समय बाद वे जब नगर के निकट पहुंचे तो श्रीपालको उनके सातसौ सखों समेत नगर के बाह्य उपबनमें डेरा देकर, आप (राजा) प्रथम ही मैनासुन्दरीके निकट पहुँचा और हर्षित होकर बोला- पुत्री ! अब भी तुम कर्मका हठ छोड़ो और विचार कर कहो कि कौन बर पसंद है ? तब पुत्रों बोली- ताल ! जो मुर्ति क्रियायें सावधान होकर भी दर्शन अष्ट हो, जो धर्मात्मा होकर क्या रहित हों, जो विवेकहीन ध्यानी हों, जो क्रोधो होकर त्यागी रहें और पुत्र गुणवान होकर भी बताये वचकोलोपनेवाले हों, तो उनके सब गुण व्यर्थ हैं ऐसे क्रिया, वादों कुछ लाभ नहीं है। इसलिये जा चाहें सिनेमे भिग्रहण करादे नहीं गुझे स्वीकार है । राजाकी पुत्रीके इस नोतियुक्त चक्कों कुछ भी संतोष न हुआ वह कहने लगे-पुत्री ! मैंने तेरे लिए कोटी तलाश दिया है। तु करो बर्ष पद के बनन सुनकर बहुत ति हो कहने लगी है तात ! कर्मके अनुसार जो वर मुझे मिला वही स्वीकार है। इस जन्म में वो मेरा स्वामी वही कोड़ों है । उसके सिवाय मम संसारके ओरा
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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