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________________ | ३०] श्रोपान चरित्र । हो अपने अधोन जीवोंको कष्ट पहुंचाना, कि जिससे वे सदा के लिये दुखी हो जायें, कदापि उचित नहीं है। नोति में भी कहा है कि--क्षत्रियोंका कोप बालक, वृद्ध, स्त्री, निर्मल, पशु, आधीन शरण में आये हुए और पीठ दिखाने बालोंपर नहीं होता है। चाहे जो हो परन्तु फिर भये दयाके पात्र हैं इत्यादि नाना प्रकारसे मंत्रियोंने समझाया, परन्तु होनी अमिट है, राजाके मन एक भी न जंचा। उसने उत्तर दिया-बरे मंत्रियों ! तुम लोग इस विषय में कुछ नहीं समझते । यथार्थमें ऐसा पुरुष तान खंड में तलाश करने पर भी नहीं मिलेगा, सिवाय इसके यह उत्तम कुलीन क्षत्री भी है सब कारवार राजाओं सरीखे ही है। रोग तो शरीरका विकार है । माल, खजाना, सैन्य आदिको कुछ भी कमी नहीं है । यह पुरुष परम दयालु न्याय नाति आदि गुणले परिपूर्ण है । जैसे अंधे के हाथसे बटेर पक्षीका आना कठिन है, इसी तरह जो इसे छोड़ जाऊं तो फिर ऐसा वर मिलना कठिन है. इसलिये अवसर हाथसे नहीं जाने देना चाहिए । मंत्रियोंने पुनः विनय की हे स्वामी ! स्त्रियोंको धन, वस्त्र, राज्य और ऐश्वर्य आदिका चाहे जितना सच क्यों न हो परन्तु यदि पतिका सुख न हो तो वह सब कुछ उन्हें के समान है। जाने माता, द्रोपदी, जुल आदिकी कथा नहीं सुनी कि जिन्होंने पूर्ण सुखदर कूल डालकर वे अपने पति कर अनेक प्रकारका वृथा + समझा था, वो कप उन्हें } साग करना ही स्त्रियोंको) यही नहीं मिला तो और सुख सब ऐसे हैं--जैसे कठपुतलीका श्रृंगारना । यद्यपि श्रमका चित इस समय किसी कारण ऐसा हो गया होगा, वरन्तु पोछ
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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