________________
मेनासुन्दरीका श्रीपाल से ब्याह |
[ २९:
न जाने राजा क्यों इस कोठी से मिल रहे हैं, जिनके अंगोपांग सड़कर गिर रहे हैं, महा दुर्गन्ध निकल रही है इत्यादि १. कि इतने में हो राजा पहुपालने श्रीपाल से कहा- मैं उनकीड़ा लिए आया हूँ, आपका आगमन यहां किस प्रकार हुआ है? क्यों कर यह नगर बसाया है यह जानना चाहता हूँ ।
तव श्रीपालने आद्योपांत कुछ कथा कह सुनाई। यह" सुनकर राजा प्रसन्न होकर बोला- मैं आपसे मिलकर बहुत प्रसन्न हूँ, आपको जो चाहिये सो मांगो।
श्रीगलने देखकर कहा जो आप प्रसन्न हैं, और वर देते हैं, तो आपकी पुत्री मेनासुन्दरी मुझे दीजिये । राजा पहुबालने सुनकर प्रथम तो कुछ मनमें क्रोध किया, पश्चात् मैना सुन्दरीके वाक्योंको स्मरण कर हर्षित होकर बोले- तथास्तु अर्थात् है' कुष्टीराय ! आपको मैंने अपनो लघु कन्या मेनासुन्दरी दी। चलो, शीघ्र मेरे साथ बावो, और कन्याको ब्याह कर सखी हो । श्रीपाल हर्षित हो राजाके साथ चलने को तैयार हुये
!
परन्तु ऐसे अवसर में मंत्रियोंसे भला कब चुप रहा जाता है ? तुरन्त ही गद्गद् हो दिन वचनों द्वारा राजासे प्रार्थना करने लगे-- हे नाथ ! बड़ा अनर्थ हो जायेगा। आपको प्रथम ही गुप्त मंत्र कर ऐसा वचन देना चाहिये कहां तो वह षोडश वर्धकी सुकुमारी कन्या और कहां यह कोही अगोपांगगलित शरीरी पुरुष ? ऐसा बनमेल सम्बन्ध उचित नहीं । सब लोग हंसगे और निन्दा करेंगे ।
हे राजा ! कन्या अपने माता-पिता के अधोन होती है इसलिये उन्हें चाहिए कि योग्यायोग्यका पूर्ण विचार करें । यदि बालकोसे कुछ अपराध भी हो जावे, तो भी माता-पिता उसे क्षमा ही करते हैं। अपने थोडेसे मानादि कषायके वश