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श्रीपालका वनवासको जाना । | १९ जब श्रीपालके वन जानेका खबर प्रजाके लोगोंको मालुम : हुई तो घरोंधर शोक छा गया, वस्तो श्रीरहित शून्यसी दीखने · लगी, सब लोग इस वियोग जनित दुःखसे व्याकुल हो रुदन - करने लगे अस्थायो राजा वीरदमनके भो टपटप आंसू गिरने लगे । माता कुन्दप्रभा तो बाबलीसी हो गई । उनको अपने पति अरिदमनकी मृत्युका शोक तो भूला ही न था कि पुनः · पुत्र वियोगका दुःख आ पड़ा । वे गद्गद् स्वरसे बिलाप करने लगी। विशेष कहांतक कहें. शोकके कारण दिन भी रात्रिस्त मालुम होने लगा । यद्यपि वीरदमन राजाने सबको धैर्य दिया, तथापि राजभक्त प्रजाको संतोष कहां? हाय ! कर्मसे कुछ वश नहीं है । देखो ! कैसी विचित्रता है किपुण्य उदय अरि मित्र है, विष अमृत हू जाय । इष्ट अनिष्ट है परनमें, उदें पाप जब थाय ॥
निदान सब लोग या छ काल बाद शोक छोड़ निज निज कार्य में दत्तचित्त हुये। काका वीर दमन राज्य करने लगे, और राजा श्रीपाल उद्यान में जाकर सानसौ वीरों सहित कर्मका म भोगने लगे ।
मैनासुन्दरीका वर्णन
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