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श्रीपाल चरित्र।
तात्पर्य-इन सबका रोग दिनोंदिन बढ़ने , लगा, और शरीरसे बहुत दुर्गन्ध निकलने लगी। जिस ओरकी पवन होती थी उसा ओरके लोग इनके शरीरका दुर्गन्धिसे व्याकुल हो जाते थे । प्रजामें एक तो राजाके दुःखसे योहा दुःख छा रहा था, वूसरे दुर्गन्धिसे और भी बुरी दशा थी परन्तु प्रजाके लोग राजासे यह बात कहने में संकोच करते थे, इसलिये कितने तो घर छोड़कर बाहर निकल गये, और कितने ही जानेकी तैयारी करने लगे, अर्थात सब नगर धोरे २ उजाइसा प्रतीत होने लगा, तब नगरके बड़े २ समझदार लोग मिलकर राजा श्रीपालजो के काका वीरदमन के पास गये व अपनी सब दुःख कहानी कह सुनाई।
वोरदमनने सललो धीरन देकर कहा -- लोग गिनी प्रकार व्याकुल न हों । राजा श्रीपाल बड़े न्यायां और प्रजा. वत्सला हैं । वे आजकल पोड़ाके कारण बाहर नहीं निकलते, इसीलिये उनके कानों तक प्रजाकी दुःख-बार्ता नहीं पहुवी है। इसीसे अब तक आप लोगोंको कष्ट पहना है । अब शान ही यह खबर उनको पहुँचाई जायेगी, और आशा है कि वे तुरन्त ही किसी भी प्रकारसे प्रजाके इस दुःखका प्रतीकार करेंगे। इस प्रकार संतोषित कर वीरदमन ने सबको विदा किया ।
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