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________________ श्रोपालको कुष्ट याधिका होना । [१५ दुष्ट जनोंकृत उपद्रवोंसे सुरक्षित किया। इनके राज्य में लुच्चे चोर लबार, चुगलखोर, व्यभिचारी, हिसक आदि जोव क्वचित् भी दृष्टिगोचर, नहीं होते थे । सब लोग अपने२ धर्म कर्मोमें आरुढ़ रहते थे। राजाज्ञा पालन करना उनका मुख्य कर्तव्य था । इस तरह न्याय ना लिपूर्णक इनका राज्य 'बहुत काल तक निष्कंटक चला । =*= भोपालको कुष्ट ब्याधिका होना __ जिस समय श्रीपालजी सुख पूर्वक कालशेष कर रहे थे और प्रजाका न्याय तथा नीतिपूर्वक पालन करते थे, उस समय उनका यह ऐश्वर्य दुष्ट कमसे सहन नहीं हुआ, अर्थात् कामदेव तुल्य राजा श्रीपालके शरीरमें कुष्ट । कोढ़ ) रोग हो गया, सब शरीर गलने लगा, और उसमें से पीर लोहू आदि बहने लगे, जिससे समस्त शरीरमें पीड़ा होने लगी और दुर्गन्ध निकलने लगी। यह दशा केवल राजाको ही नहीं किन्तु राजाके समीपी सात सौ वीरों की भी हुई । दोवान, सेनापति, मत्री. पुरोहित, कोतवाल, फौजदार न्यायाधीश और अंरक्षक सबको एकसी दशा थी 1 प्रजागण इनकी यह दशा देख अत्यंत दुःखी थे, और अपने राजाको भलाई के लिए सदैव श्रोजीमे प्रार्थना करते थे, कि किसी प्रकार ज व ममोपी सुमटोंको म पिले परन्तु कार्य बलवान है, उसपर किसीका दश नहीं चला । एक कविने लाक को कहा है - कर्म बली अति जगतमें, सब ही जीव वश कीन । महाबली पुनि वे पुरुष, करे कर्म जिन छीन ।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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