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भोपाल चरित्र ।
श्रीपालका राजतिलक और राजा
अरिदमनका कालवश होना एक समय राजा अरिदमन सभामें बैठे थे कि इतने में '. श्रीपालकमार भो सभामें आये और योग्य विनय कर यथास्थान
बैठ गये । उस समय राजाने अपनो वृद्धावस्था और श्रीपाल कुमारको सुयोग्यता देखकर तथा इनके अतुल पराक्रम, न्याय' शीलता और शूरवीरतादि गुणों से प्रसन्न होकर इनको राज' तिलक देने का निश्चय कर लिया । और शुभ मुहतमें सब
राजभार इनको सौंपकर आप एकांतवास करने तथा धर्म ध्यानमें कालक्षेप करने लगे ।
थोड़े ही समय बाद वृद्ध राजा अरिदमन कालवश हये । जिसमे राजा श्रोगल इनके काका दीरदामन, लता मामा कुन्दप्रभादि समस्त स्वजन तथा पुरजन शोकसागर में डूब गये। चारों ओर हाहाकार मच गया, तब, बुद्धिमान राजा श्रीपालने पूरजनोंको अत्यन्त शोकित देख धयं (साहस) धारण कर सबको ससारको दशा और जोव कर्मका संबन्ध इत्याद समझाकर संतोषित किया ।
उन्होंने कहा कि मृत्यु तो मेरे पिताका हुई है, तुम्हारे पिता तो हम उपस्थित हो हैं, अतएव पिताके राज्यमे जिस प्रकार आप लोग सुख शांत से रहते थे, वैसे हो रहेंगे, मैं शक्तिभर आपको सखी करने का प्रयत्न करूगा और आप भी न्यायपूर्वक मेरी सहायना करगे इत्यादि । इस क अनन्तर बे राज्यका में दन्तचित हुए । चारों दिशाओं में अपने बुद्धिबल तथा परराजमसे अपने न्यानी तथा प्रजावत्सलयनेको कीति विस्तृत कर दी । बड़े राजाओंको अपने आज्ञाकारी बनाये, दुर्जनोंको जोतकर वश किये, प्रजाको चौरादि]