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________________ श्रीपानके जन्मका वर्णन I [ १० होकर पेटके बलसे रेंगते, कभी घुटनोंके बल से चलते, कभी कुदक कुंदक कर पैर उठाते, कभी संकेत करते, और कभी अपनी तोतली बोली बोलते थे। कभी मातासे इस कर दूर हो जाते थे, और कभी दौड़कर लिपट जाते थे । वे नंग के बालकोंमेंमे रुसे मालूम होते, जैसे तारागणों में चन्द्रमा शोभार देता है इस प्रकारकी कोटाको देखकर माता पिताका मन प्रफुल्लित होता था । > 'बालककी सुन तोतरी बाता, होत मुदित मन पितु अरु माता इस तरह जब श्रीपालजी माठ वर्षके हुए, तब इनका मुजीबन्धन तथा उपन संकार किया अर्थात् गरेक पहनाकर पंचाणूव्रत दिये गये, श्रावक के अष्टमूलगुण धारण कराये, सप्त व्यसनका त्याग कराया और यावत् विद्याध्ययनकाल पूर्ण न हो वहां तक के लिए अखण्ड ब्रह्मचर्यवत दिया गया । इस प्रकार यथोक्त मन्त्रों द्वारा विधि पूर्वक पूजन हवनादि करके इनको गृहस्थाचायंके पास पढनेके लिये भेज दिया । सो गुरुने प्रथमही कारसे पाठ आरम्भ कराकर घोडी ही दिनों में श्रीपाल कुमारको तर्क छन्द, व्याकरण, गणित सामुद्रिक, रसायन, गायन, ज्योतिष, धनुषवाण ( शास्त्र विद्या ) पानी में तैरना, वैद्यक, कोकशास्त्र, वाहन नृत्य आदि विद्या और संपूर्ण कलाओं में निपुण कर दिया । तथा आगम और अध्यात्म विद्यायें भी पढ़ाई । इस प्रकार श्रीपालजी समस्त विद्याओं में निपुण होकर गुरुकी आज्ञा ले अपने माता-पिता के समीप आये और उनको विनय पूर्वक नमस्कार किया । माता-पिताने भी पुत्रको विद्यालंकृत जानकर शुभाशीर्वाद दिया। अब घोपालकुमार नित्यप्रति राज्य सभामें जाने और राज्य के कामों पर विचार करने लगे ।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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