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श्रीपला चरित्र |
हाथी,
जिससे वे सदैव के लिए अयाचक हो गये। किलोका किसीको घोडे, किसीको पाम, क्षेत्र आदि जागो भी पारितोषक में दो गयीं। नगर में जहां तहां वादियोंको ध्वनि सुनाई देती थी। तात्पर्य कि राजाने पुत्र जन्मका बड़ा हर्ष मनाया, और यह सोचकर कि ये स धर्महोका फल है, जिनेन्द्र - देवकी विधिपूर्वक पूजा भक्ति भी को ।
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इस प्रकार जब बालक एक मासका हुआ तब राजा - रानो बडे उत्साह समारोहपूर्व 6 बालकको लेकर श्री जिन मंदिरको गये, और प्रथमहो भगवानको अष्टद्रश्यसे पुजा कर, गोछे वहां तिष्ठे हुये श्री गुरुके चरणारविन्दोंमें बालकको रखकर, विनयपूर्वक नमस्कार किया, तब मुनिराजने जिनको "कि शत्रु मित्र समान हैं, उनको धर्मवृद्धि देकर धर्मोपदेश दिया सो दम्पत्तिने ध्यानपूवक सुना, और अपना धन्य भाग्य समझकर मुनिको नमस्कार करके घरको लौट आये । और निमित्तज्ञानाको बुलाकर बालकके ग्रह- लक्षण और नाम आदि पूछा तब निमित्तज्ञारीने जन्म लग्न परसे बिचार कर कहा कि- "हे राजन् ! आपका पुत्र बहुत हो गुणवान, पराक्रमी, कर्मशत्रुओं को जीतने वाला, प्रबल प्रतापो अरबोर, रणधीर और अनेक विद्याओंका स्वामी होगा। इसके जन्म लग्न में यह बहुत अच्छे पडे है । मैं इस बालकके गुणों को वचन द्वारा नहीं कह सकता, इसका नाम श्रीपाल रखना चाहिए ।
जब राजाने इस प्रकार होनहार बालकके शुभ लक्षण सुने तब भानन्द और भी अधिक बढ़ गया । उन्होंने निमित्तज्ञानोको अतुल संपत्ति वेकर बिदा किया, और बड़े प्यारसे पुत्रका लालन पालन करने लगे । अब दिनोंदिन श्री श्रीपालकुमार 'द्वितया चंद्रमा समान वृद्धिको प्राप्त होने लगे। इनकी - बालक्रीड़ा मनुष्योंके मनको हरनेवालो वो कभी ये बधे
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