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श्रीपाल चरित्र ।
वह (राजा धोकटका जीव) स्वर्गसे चलकर तू श्रीगल हुआ . हैं और रानी श्रीमतीका जीव चयकर यह मौनासुन्दरी हुई। . इसलिये हे राजन् ! तुने जो सातसो वीरों सहित मुनि-. राजको 'कोढीर कहकर मानि की थी. उसी के प्रमावसै त उनः । सब सखों सहित कोदो हुआ। और मुनिको पानोमें गिराया, उससे तू भी सागरमें गिरा फिर दयालु होकर निकाल लिया, इसीसे तू भी तिरकर निकल आया। तने मुनिको भ्रष्टर' कहकर निन्दा की थो, इसीसे भांड़ोंने तेरा अपवाद उड़ाया। तूने मुनिके मारने को कहा था, इसीसे तू शूलीके लिए भेजा गया, और दुःख पाया। इसलिये हे राजा ! मुनिकी तो क्या,. किसी भी जीवकी हिंसा दुःखकी देनेवाली होती है, और मुनिघातक तो सातवें नरक जाता है। तूने पूर्वजन्म में श्रावकके व्रतों सहित सिद्धचक्र प्रतका आराधन किया था, जिससे यह विभूति पाई, और पूर्वभवके संयोगसे ही श्रीमतीजोके जीव मौनासुन्दरो और इस पवित्र सिद्धचक्र मतका लाभ तुझे हुआ | ___ यह सुनकर श्रीपालने मुनि महाराजकी बहुत स्तुति वंदना की और अपने भवांतरको कथा सुनकर पापोंसे विशेष भयभीत हो धर्ममें दृढ हुआ । पश्चात् श्रागुरुको नमस्कार कर निज महलोंको आया और पुण्ययोगसे प्राप्त हुए विषयों को ' न्यायपूर्वक भोगने लगा।
इस तरह बहुत दिनतक इन्द्र के समान ऐश्वर्यधारो श्रीपालने इस पृथ्वी पर नीतिपूर्णक राज्य किया । आपके राज्यमें । दीनदुःखी कोई भी नहीं मालूम होते है।