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________________ बाल गरिन । मकरध्वन खंडो घर , छही प्रम भाषण सुण राव । आठ कर्म मामा मद हन. माठ सिख गुण धारण धर्म ।। पुरण ब्रह्मचर्य प्रसिपाल, दश लक्षण गुण घरन दयाल । द्वादातर धारो जिस नाहि, द्वादशांग भाषण जो आहि ।। लेग विधि चारिष प्रमाण, पाले जो प्रल धरन सुजान । सहें परोषह बाईस सोय, इनके शत्रु मित्र सम होय ।। कहां तक कहूं आप गुण माल, द्वय कर जोड नमैं श्रीपाल । इस तरह सब पुरजन और रनवास सहित श्रीपाल स्तुति करके श्रीगुरुके चरणकमल के समीप हर्षित होकर बैठे । और भी सब लोग यथायोग्य स्थानपर बैठे। पश्चात् राजा बोलेस्वामिन् ! कृपा कर मुझे ससारसे पार उतारनेवाले धर्मका उपदेश दीजिये ।' ____तब श्रीगुरु बोले-हे राजन् ! तुमने यह अच्छा प्रश्न किया। अब ध्यानसे सुनो। वस्तुका जो स्वभाव है, वही धर्म है। सो इस आत्मा का स्वभाव शुद्ध चतन्य अर्थात् अनंतदर्शन, ज्ञानस्परूप है और अमूर्तिक हैं, परन्तु यह अनादि कर्मबन्धके कारण से चतुति रूप संसार में परिभ्रमण करता हुआ पर्यायबद्धि हो रहा है। इसालये इसको परपदार्थोमे भित्र अनतदर्शन, ज्ञानमयी, सच्चिदानंदस्वरूप, एक अविनाशो, अबण्ड, अक्षय, अन्याबाध, निरन्जन, स्वयं बुद्ध, परमात्म स्वरूप, . समयसार निश्चय करना, सो तो सभ्यग्दर्शन है। और न्यूनाधिकता तथा संशय विपर्यय और अनध्यवसायादि दोषोंसे रहित जो वस्तुको सूक्ष्म भेदों सहित जानना सो सम्यक्ज्ञान है, और स्वस्वरूपमें लीन हो जाना सो सम्यक्चारित्र है। इस तरह निश्चयरूपमे तो धर्मका स्वरूप यह है 1 सो व्यवहार बिना निश्चय होता नहीं। क्योंकि व्यवहार धर्म
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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