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________________ श्रीपालका राज्य करना । ' छोडकर विचर रहे है। गायका बच्चा सिंहनीके स्तनसे लग · जाता हैं । सांप नेवलाको खिमाता है 1 चहा बिल्लीसे क्रीड़ा करता है । चहुँ ओर शिकारियोंको शिकार भी नहीं मिलता हैं । हे नाथ ! ऐसा अतिशय हो रहा हैं।' यह सुनकर श्रीपालजी सिंहासनसे उतरे, मोर वहींसे प्रथम हो सात पद चलकर परोक्ष रीतिसे नमस्कार किया और वस्त्राभूषण जो पहिरे थे सो सब उतारकर बनमालोको दे दिए तथा और भी बहुत इनाम उसको दिया । पश्चात् नगर में आनन्दभरी वजवा दी, कि सब लोग' महामुनि वंदनाको चलें । नगरके बाहर बन में श्री महामुनि आये हैं । पश्चात् अपना चतुरंग संन्य सजाकर वे बड़े उत्साहसे प्रफुल्लित चित्त हो रनवास और स्थजन पुरजनोंको साथ लेकर बन्दनाको चले । कुछ ही समय में उद्यान में पहुँचे, जहांकी शोभा देखकर मन आनन्दित होता था । मंद सुगंधि पवन चल रही था, मानों बसन्त ऋतु ही हो।। ___ जब निकट पहुंचे तो श्रीपालजी वाहनसे उतरकर यहाँ यहां देखने लगे, तो कुछ ही दूर मन्मुख अशोक वृक्षके नीचे सब दुःखको नाश करनेवाले महामुनिराज विराजमान थे, सो देखते ही श्रोपालो हर्षको सोमा न रही। वे श्रीगुरुको नमस्कार फर तीन प्रदक्षिणा देकर स्तुति करने लगेधन्य धन्य तुम थोमुनिराज, भव जल तारन तरन जहाज | एक परम पद जाने सोय, चेतन गुण अराधे जोय ॥ राग द्वेष नहिं जाके चित्त, समता केवल पाले नित्त । तोन गुप्ति पालन परमस्थ, रत्नत्रय धारण समरत्य ॥ तीन शल्य मेंटन शिवकत, ज्ञान धरण गुण वल्लभ संत । • भवजल तारपा तरण जहाज, पंच महावत धर मुनिराज ।।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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