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श्रीपाल चरित्र ।
तो उसने बहुत सराहना करके कहा कि यह पुत्र उत्तम लक्षणोंवाला है, इसका नाम धनपाल है ।
इस तरह दूसरा महीपाल तोसरा देवरथ, और चौथा महारथ में चार पुत्र मैनासुन्दरीके और हुए। रयनमंजूषाके सात पुत्र हुए, गुणमालाके पांच पुत्र हुए, और सब स्त्रियोंसे किसीके एक, किसीके दो | इस प्रकार महाबली, धोरवीर गुणवान् कुल बारह हजार पुत्र हुए। वे नित्यप्रति दोषजके चन्द्र समान बढ़ने लगे ।
अहा ! देखो, धर्मका प्रभाव ! इससे क्या नहीं हो सकता ! धोपालजी धर्म के प्रमादसे सुखपूर्वक काल व्यतीत करते थे । 'एक दिन श्रीपालजी सिंहासनपर बैठे थे, पास ही बांई ओर मैनासुन्दरी भी बैठी थी, बन्बोजन विरद खान कर रहे 'थे, सेवकजन चमर ढोर रहे थे, नृत्याकारिणो नृत्य कर रही यो गीत वादिय बज रहे थे, विनोद हो रहा था, कविजन पुराण पढ़ रहे थे, चारों ओर कुकुम, चंदन, कस्तूरो, कपूर आदि पदार्थों की सुगंधा फैल रही थी, अबीर गुलाल उड़ रहा था । ताम्बूल, सुपारी, इलायची, जावित्री, लोंग आदि मंट रहे थे। कहीं आम, जाम, सीताफल, नारियल, केला आदि फल और किसमिस, द्राक्ष, छुआरा, चिरोंजी, काजू, पिस्ता, अखरोट, अंगुर आदि सब बंट रहे थे। इस प्रकार राजा क्रीड़ा कर रहा था कि वनमाली आया, और वह नमस्कार कर छह ऋतुके फलफूल राजाको भेंट करके नम्र हो बोला
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'हे स्वामिन् ! इस नगर के वनमें समीप हो श्री १००८ केवली मुनिराजका आगमन हुआ है ! जिनके ऋतुओं के फलफूल साथ ही फूले मोर फल सूखे सरोवर भर गये हैं। जाति-विरोधी जीव
प्रभाव से सब आ गये हैं । परस्पर वैर