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________________ श्रीपालका पहुपालसे मिलाए । १५५ 'हे राजराजेश्वर ! आपको देखकर मुझे बहुत मोह उत्पन्न होता है, परंतु मैं अबतक आपको पहिचान नहीं सका हूं कि आप कौन हैं ?' तब श्रीपाल हंसकर बोले- महाराज ! मे आपका लघु जंवाई श्रीपाल ही तो हूं, जो मैनासुन्दरी से वारह् वर्णका वायदा करके विदेश गया था, सो आपके प्रसादसे आज पीछे आया हूँ।' यह सुनकर राजाने फिरसे श्रीपालजोको गले लगा लिया, और परस्पर कुशल क्षेम पूछकर हर्षित हुये । नगर में आनंद मेरो बजने लगी। फिर राजा अपनी पुत्रीके पास गया, और क्षमा मांगने लगा - "हे पुत्री तू क्षमा कर । मैने तेरा बड़ा अपराध किया | तू सच्ची धर्मधुरंधर शीलवती सती हैं । तेरा बडाई कहां तक करू ?" मेनासुन्दरीने नम्र होकर पिताको सिर झुकाया । पश्चात् राजा रयनमंजूषादि सब रानियोंसे मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ, और सर्व संघको लेकर नगर में लौट आया । नगरकी शोभा कराई गई । घर मंगल वधावे होने लगे । राजाने श्रीपालका अभिषेक कराया और सब रानियों समेत वस्त्राभूषण पहिराये। इसप्रकार श्वसुर जंबाई मिलकर सुखपूर्वक काल व्यतीत करने लगे ।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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