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श्रोपाल चरित्र
और हे महाराज ! यह राजा बहुत ही प्रबल मालूम पडता है, इसलिये युद्ध करने में कशलता नहीं दीखती हैं, किन्तु किसो प्रकार उससे मिल लेना ही उचित हैं।
तब राजाने मंत्रियोंक, “लाहके अनुसार दूतको छुडवाकर कहा कि तुम अपने स्त्रामोसे कह दो कि मैं आपको आज्ञा मानने को तत्पर है । यह सुनकर दुत हर्षित होकर पीछे श्रीपालके पास गया, और यथावत् वात कह दी कि राजा पहपान आपसे आपकी आज्ञानुमार मिलने को तैयार हैं । ___तब श्रीपाल ने मोना मुन्दसे कहा-प्रिये, राजा तुम्हारे
हे अनुसार बिल के तौर : ॐनस अभयदान देना हो योग्य हैं। मैनासुन्दरी ने कहा 'आपकी इच्छा हो सो कीजिये ।' तब श्रीयाल ने पुनः दूतको बुलाकर राजा पहुपाल के पास यह संदेशा भेजा कि पिता न करे और अपने दल बल सहित जैसा राजाका पवार है उसी प्रकार से आकर मिन । सो दुतने जाकर पढ़पालका यह संदेशा सुनाया । सुनकर राजाको बहुत हर्ष हुआ औः दूत को बहु-सा पारितोषिक देकर विदा किया । तथा आर का निशान, हय, गव, रथ, वाहनादि सहित बड़ी धूमधामसे मिलनेको चला । जब पाम पहुं वा तब राजा पहूपाल हाथीसे उतरकर पांच प्यादे हो गया। यहां श्रीपालजो भी श्वसुरको पांच प्यादे आते देखकर आप भी पांव प्यादे चलकर सन्मुख गये, और दोनों परस्पर कंठसे कंठ लगाकर मिले । दोनोंको बहुत आनंद हुआ। राजा पहपालके मनमें एकदम कुछ अनोखे भाव उत्पन्न हुए, इसलिए वह श्रीपालके मुहकी ओर देखकर बोले