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पीपालका पहुपालमे मिलाप ।
श्रीपालका पहपालसे मिलाप श्रीपाल प्रिया के ऐसे वचन सुनकर अत्यंत हर्षित हुए और तुरंत ही एक दूतको बुलाकर उसे मब भेद समझाया, और राजा गहुपाल के पास भेजा । यो इन स्थानकी आज्ञानुमार मीठा ही राजामी उचौडोर जा पहुँचा और दरबानके हाय अपना संदेश भेजा। राजाने उरो आनेकी आज्ञा दो, सो उस दुतने सन्मुख जाकर राजा पहुनाल को यथायोग्य नमस्कार किया । राजाने कुशल पूमी, मब दुन बोला___ 'महाराज ! एक अत्यंत बलवान पुल कोटोभट्ट अनेक देशोंको विजय करके. और बहाके राजाओंको वश करता 'हुआ आज यहां बा पहुंचा है उसको मैया नगरके चारों ओर पड़ रही है। उसके सामने किसीका गब नहीं है । सो उसने आपको भी आजा की लंगोटी लगा कम्बल ओढ़ माथे पर पडीका भार और कधि कह दो मकर मिलो तो कुशल है. अन्यथा क्षण भर में विवस भर दुगा । इसलिये हे गजन् ।
आप जो कुशल चाहते हो, तो इस प्रकार मे जाकर उससे मिलो, नहीं तो आप जानों । पानी में रहकर मगरसे वर भार. काम नहीं चले।" ___ जा पहुपालको कूल के बचनोंसे कोन आया, और वे बोने"इस दुष्टका मस्तक उतार लो, जो इस प्रकार अत्रिनय कर रहा हैं।" तब नौकरोंने आकर दूतको तुरंत ही पकड़ लिया
और राजाको आज्ञानुसार दंड देना चाहा. परंतु मंत्रियोंने कहा- 'महाराज ! दूतको मारना अनुचित है, क्योंकि वह बेचारा कुछ अपनी ओरसे तो कहता ही नहीं है। इसके स्वामी ने कहा होगा. पेसा हो तो कह रहा है, इसमें इसान कुछ अपराध नहीं है, इसलिये इसे गुपबा देना ही योग्य है।