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________________ १२] - ग-. भोपाल परिम। रानियां मैनासुन्दरीको सेवा सुश्रुषा करने लगी। पश्चात एक समय मौनासुन्दरोको अपने पिताके पूर्वकृत्यका स्मरण हो आया सो वह बदला लेने के विचारसे पतिसे बोली_ 'हे स्वामिन् ! आप तो दिगंत-विजयी हो इसलिये मेरो इच्छा है कि आपके द्वारा मेरे पिताका युद्ध में मान भंग होने और जब वे कांधेपर कुल्हाडी धरे हुए, कम्बल ओढ़कर और लंगोटी लगाकर सन्मुख आव तभो छोडना चाहिये ।' यह सुनकर कोटीभट्ट चुप हो गये और कुछ सोच विचार कर बोले-हे कांदे ! तम्हारे पिलाने मेरा बड़ा उपकार किया है, अर्थात कोढीको कन्या दी है । जिस समय में स्वयं स्वजनोंसे वियोगी हुआ यत्र तत्र फिर रहा था तब उनने मेरी सहायता की थी सो ऐसे उपकारीका अपकार करना कृतज्ञता और घोर पाप है । अत: मुससे यह कार्य कठिन हैं ।' तब मैनासुन्दरी बोली ___ 'हे स्वामिन् ! में कुछ द्वेषरूपसे नहीं कहती है, परन्तु यदि कुछ चमत्कार दिखाओंगे तो उनकी जिनधर्म पर दृढ श्रवा हो जायगी यही मेरा अभिप्राय है।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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