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श्रीपालको कुटुम्ब मिलन ।
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पारा हो मेरी प्रथम पत्नी पट्टरानी मैतासुन्दरी है। इन्हीं प्रसादसे तुम सब आठ हजार रानियां और ये सब संपत्तियां मुझे प्राप्त हुई हैं।
तब उन स्त्रियोंने स्वामीके मुख से यह राम्वन्ध जानकर यथाक्रम सासु कुन्दप्रभा और मैना सुन्दरीको यथायोग्य नमस्कार करके बहुत विनय सत्कार किया | इस प्रकार परस्पर सम्मिलन हुआ । पश्चात् श्रीपालीने माता और मैना सुन्दरीको अपना सब कटक दिखाया
माताकी आज्ञा लेकर मैासुन्दरीको आठ हजार रानियोंको मुख्य पट्टरानीका पद प्रदान किया और बोले
'हे सुन्दरी ! यह सब कुछ जो विभूति दीखती है सो तेरे ही प्रसाद में है । में तो विदेशी पुरुष हुँ, जो विपत्तिका मारा यहां आया था। तब मैनामुन्दराने विनययुक्त हो नीचा मस्तक कर लिया और बोली
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'हे स्वामिन ! मैं आपको चरणरजके समान हूं। मैंने अपने पूर्व पुण्यके योगसे ही जैसा भर्तीर पाया है। आप तो कोटीभट्ट, साहसी, धीर बोर, पराक्रमी और महाबली हो । लक्ष्मी तो आपकी दासी है। आपकी निर्मल कीर्ति दशों दिशाओं में व्याप्त हो रही हैं।'
इस तरह मैनासुन्दरीका पट्टाभिषेक हो गया और वे रयन मंजुषा गुणमाला, चित्ररेखादि समस्त आठ हजार