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________________ : १५० ] थोपाल चरित्र | इस प्रकार सासु बहूकी बात हो रही थीं कि श्रीपाल जी धीमे स्वरसे किवाह स्वटखटाकर बोले- माताजी! किवाड़ खोलिये, आपका प्रिय पुत्र श्रीपाल द्वार पर खड़ा है । इस प्रकारको आवाज सुनकर दोनों सासु बहू सहम गई, उनका वियोगका शोक हर्षमें परिणत हो गया, उनके हर्ष रोमांच हो आए और इसलिये शीघ्रताशीघ्र उन्होंने किवाड़ खोल दिये । किबाड खुलते हो वे भीतर गये और माताको प्रणाम किया। माताने हृषित हो आशीर्वाद दिया हे पुत्र ! तुम विरंजीवी होकर प्राप्त को हुई लक्ष्मीको सुखपूर्वक भोगा और तुम्हारा यश सर्वत्र फले । पश्चात् श्रीपालांकी दृष्टि मैनासुन्दरीकी ओर गई. तो देखा कि वह कोमलांगी अत्यंत क्षोणशरीरी हो रही है तब उसके महल में गये । वहां पहुँचते हो मेनासुन्दरी पांवपर गिर पडी । कुछ कालतक सुखमूर्च्छित होनेसे चुपकी ही रहो, फिर नम्र शब्दों में चित्तके हर्षको प्रकाशित करने लगी- 'अहा ! आज मेरा धन्यभाग्य हैं, जो मैं स्वामीका दर्शन कर रही हूं । हे प्राणवल्लभ ! इस दासीपर आपको असीम कृपा है, जो समय पर दर्शन दिये ! धन्य हो ! आप अपने बचनके निर्वाह करनेवाले है, मैं आपको प्रशंसा करनेको असमर्थ हूं ।' तत्र कोटीभटने अपनी प्रियाको कंठसे लगाकर उसे यं दिया ! पश्चात् परस्पर कुशल वृत्त पूछने के, श्रीपालजी माता और मैना सुन्दरीको अपने कंटकमें ले गये, और वहां जाकर माताको उच्चासनपर बैठाकर निकट ही मैना सुन्दरी को उनही के आसनके पास ही स्थान दिया पश्चात् रयनमंजूषा आदि समस्त स्त्रियोंको बुलाकर कहा - "यह उच्चासन पर विराजमान हमारी पूज्य माता और तुम्हारी सासुजी हैं और उनके -
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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