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श्रीमालको कुटुम्ब मिलन । आपको जो सेवा बन सकी सो यदि उसमें मेरी भूल व अज्ञानतासे जो त्रुटि हुई हो सो क्षमा करो और दयाकर आज्ञा दो कि मैं शो न ही सकल संयम धारण करू । अब न विलम्ब करनेसे मेरी आयुका अमूल्य समय व्यर्थ ही जाता दीखता है।
तब कुन्दप्रशा बोली- "पुत्री! दो चार दिनतक और भी वैर्म र वखो। यदि इतने में वह (मेरा पुत्र) न आवेगा, तो मैं और तू दोनों हो साधर दोक्षा ले लेवेंगे, परन्तु मुझे आशा ही नहीं किन्तु पूर्ण विश्वास है कि वह धीर, बीर अवश्य ही इतने में आवेगा। तब सुन्दरी बोली---
माताजो ! यह तो सत्य है कि स्थानी अपने वचनके पक्के हैं परन्तु कम बड़ा बलवान हैं। क्या जाने स्वामोको कौनसो पराधीनता आगई है इससे नहीं आये । बिना संदेश मैं कैसे निश्चय करू ? कि वे इतने दिनों में आ ही जावेंगे ।"
तब माताने कहा- "हे पुत्री ! तू इतनी अधीर मत हो। निश्चय हो तेरा पति २-४ दिनमें आवेगा । सो यदि वह
आया और सूना घर देखेगा, तो बहुत दुःखी होगा, इसलिए जैसे तुम इतने दिन रहो हो, जैसे भी २-४ दिन सही । फिर हम तुम दोनों ही दीक्षा लेंगे।" मैनासुन्दरी बोली माताजी ! अब माहवा समय बिताना व्यर्थ है। आप भी मोहको छोड़कर चलों, और प्रभूके चरणोंकी सेवा करो। अब रहना उचित नहीं है। जो रहूगो तो बहुत दुःख उठाना पड़ेगा ! माताजी! आप तो उनकी जननो हो । सो पुत्रको विभूती भी देखोगी और मेरे जैसा तो उनके अनेकों दासियां होंगी। सो अब व्यर्थ ही अपमान सहने के लिए रहूँ और इ.पपर भी सनके आने की कुछ खबर नहीं है रव क्यों अपना समय विताया जाय।