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श्रीपालका अनेक राविधीसे ब्याह । [" सकेगा। यह सुन बोपालजी प्रसन्न हो. "विसुरा आजा लेकर कुकुमपुरमें पहुँचे, सौ बही संघात सेनने "इनका आदर सहित स्वागत किया और अच्छे स्थान डेरा • कराया। सब नंगेरमैं मगरगाने होने लगा। औरं । जब इन
राजकन्याओंने गई चार पाया तो मोह सहित उत्तार वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित होकर इनसे पिलाने बाईब इनका अनुपम रूप देखते ही मोहित हो गई ।
श्रीपालजीने उनको आते देखकर यथायोग्य सन्मान सहित . बैठने को आज्ञा दी और कहा-'हे सुन्दरियो ! आप अपनीर · समस्यायें कहिये ।
तब प्रथम ही शृङ्गारगौरी बोली
समस्या-'जई साहसं सह सिद्धि' ॥१॥ पूर्ति-अवसरं कठिन विलोकके, यही राखिये बुद्धि ।
कत्र हूं न साहस छोडिये, जहं साहस तहं सिद्धि ॥१॥ तब दूसरी सूवर्णगौरी बोली
समस्या-मीप खंतह सव्व' ॥२॥ " पूर्ति-धम्म न विलमो धननि, कृपण है संचय दन्न ।
जूवा सयपले बो, गोगे पवनह सत्र ॥२॥ त सासरी पौलोमदेवी बोनी -.
समस्का-'ते पंचायण सीई' ।।३।। । पति-शील बिहना जे' विनर, तिनकी मैली देह ।
ते चारित्ता निर्मला, ते पंचायण सीह ॥३॥ तल चौथो महाग शौरी बोली --
समस्या-'तासुकांचरा मीठ ॥४॥ पूर्ति-रयनागर छोडो वे, दादुर कुबे वईठ ।