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._१३८] ......श्रीमान् अनि ..... पहपालकी रूपवती गुणवतोन्या मनामन्दराका पति हैं। यह वहसि चला तमाम जलेको क रता हुआ। इंसाया, और शाम का नकारतको पुन, मुझ SENHERIONEY किया सामागे अला, सोः पाहावामी वासाठको मुशायरा कूषित हुई। जितसं उसने छलकार मेरे पतिका प्रमुख गिरा बिमातिम्रा त्रा जीम भंा करनेका अश्चम किया, सो मील के प्रभावको विती देवने आकर मेरा कासगै दूर किया और सेठको बाब दिया। उस समय देयले मुलकाहा पाकिसुनी सुचिता मत कर, गीत हो तेरा स्वामो मुझे मिलेगा, और वह बड़ा राजा होगा सो महाराज, अबतक मेरे प्राण इसी माशापर ही विक रहे हैं। अब आपके हाथकी बात है, सोर बनाकर कालो हसारे पतिको रक्षा कोलिये मा हमाल भी अन्त निजविकोंसे देखिये।
राजा, रयत्नमंजूषा यह वृत्तांत सुनकर बहुत प्रसन्न हमा और अपने विचारीपनपर पश्चात्ताप करता हुआ तुरन्त होलीपल के पास गया और हाथ जोड़कर विनती करने खगा-'हे कुमार ! मेरी बहुत भूल हुई, सो मुझपर क्षमा करो! में अधम है, जो बिना ही विचारे यह अनर्थ कार्य किया । अब मुझपर दया करके घर पधारो । . . . तब धोखाल ने कहा- महासज ! मंत्राइमें. सह कर्म-रही जीवोंको अमविकाससे कभी सूख और कमी मा दिलाकारका है। इसमें आपाठ छ बोल नहीं है । मेरे ही पूसामन कार कर्मोन अमराना है। साकिया सफाया अझ हुआ, जो वे कर्म छूट गये । मेरा इझना हो भार कम इना।
से तो कुछ भी कलम विपर-नहीं होना सो श्रीक ही हुला। गई बाताब मलाबारीमा हाहानी।