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________________ f रनमंजूषाका श्रीपालको छुड़ाना। रनमंजूषाका श्रीपालको छुड़ाना रमनमंजूषा श्रीपालका नाम सुनते ही हर्षसे रोमांचित हो गई, और लम्बे‍ पांव बढ़ाती हुई शीघ्र हो राजसभायें आकर पुकार करके प्रार्थना करने लगी कि हे महाराज ! प्रजापालक ! दीनबन्धो ! दयासागर ! न्यायावतार ! कृपा करके हम दोनोंकी प्रार्थना पर भी कुछ ध्यान दीजिये । अन्याय हुआ जा रहा है। बिना विचारे ही एक निर्दोष व्यक्तिकी हत्या कर हम दीन अबलाओंको आप अनाथ बना रहे हैं। राजाने उनकी पुकार सुनकर सामने बुलाया और : १३७ : पूछा हे सुन्दरियों ! तुम क्या कहना चाहती हो? तुमको 'निःकारण निरसता हूँ ? कहीं। सब दोनों हाथ ओडकर बोली... "महाराज ! हमारे पति श्रीपालको निष्कारण खुली हो रही है इसका न्याय होना चाहिये ।" राजाने कहा सुन्दरियों ! यह राजवंशका अपराधी है। वह वंशहोन मांडोंका पुत्र हो करके भो यहां वंश छिपाकर रहा और मुझे धोका दिया है, इसलिये उसे अवश्य ही मूली होगी । 1 रयनमंजूषा बोली - "महाराज ! यह एक अंगो न्याय है, एक ओरकी बात मिश्री से भी मीठो होती हैं, परन्तु प्रति•वादीके लिए तीक्ष्ण कटारी है. इसलिए पहिले विचार कीजिये । और फिर जो न्याय हो सो फीजिये। हम तो न्याय चाहती है। राजाने रयनमंजूषासे कहा-"अच्छा! तुम इस विषय में कुछ जानती हो तो कहो।" सब रयनमंजूषाने कहा- हे नरनाथ ! यह अंगदेश पुरीके राजा अरिदमनका पुत्र है। और उज्जैन के चंपा - राजा
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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