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धोपाल चरित्र )
श्रीपाल के गर्भका वर्णन
उसी चंपापुर नगर में महाराजा अरिदमन राज्य करते थे, इनके छोटे भाईका गाविसमा इतका राज्य नीतिपूर्वक चारों ओर व्याप रहा था। कहीं भी किसी तरहका कोई संकट दिखाई नहीं देता था। हाथी, घोड़ा, रथ, पालकी प्यादे आदि सेना बहुतायत से थी। बडेर शूरवीर दरबारमें सदा उपस्थित रहते थे। दूर तक सब ओर इनको राज्यनीतिकी प्रशंसा सुनाई देता था। इनकी रानी कुन्दप्रभा कुन्दके पुष्प के समान अत्यन्त रूपवती और गुणवती थी, free सीतासे कम न थी। जिस प्रकार कामको रति, शशिको रोहिणी, विष्णुको लक्ष्मो और रामको सीता प्यारी : थी, उसी प्रकार यह रानी भी अपने पतिकी प्रिया थी 1 पतिके सुखको सुख और उसके दुःखको दुःख समझती थी । ऐसो पतिभक्ता स्त्रियोंको ही संसार में महिमा है, क्योंकि जो ऐसी कोई सच्चरित्रा स्त्री न होती, तो यथार्थ में स्त्री जाति आदर योग्य भी नहीं रहती । रानी जब सुख शय्यापर सोई थी, तब उसने रात्रिके पिछले एक दिन यः पहर में एक स्वप्न देखा । जिसमें स्वर्ण सरीखा बहुत बड़ा । पर्वत और कल्पवृक्ष देखे और इसी समय स्वर्भसे एक देवः चलकर रानीके गर्भ में आया ।
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इतने में प्रात:काल हुआ, और दिनकरके प्रतापले अन्ध-कारका इस प्रकार नाश हो गया, जैसे सम्यकके प्रभावसे मिथ्यात्वका नाश हो जाता है। तब वह कोमलांगी सुशीला | राना व्यासे उठी और अपने शरादिकों नित्य क्रिया से निवृत्त होकर मंद गति से गमन करती हुई स्वपतिके समीप गई, और विनयपूर्वक नमस्कार कर मधुर शब्दों में रात्रिको देखे हुए स्वप्नका सब समाचार सुनाने लगी
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