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दे रही है। ताडित भांहों के प्राका चारुरूपहिल साहस, दया, क्षमा, सन्तोष धीरज, स आदि गुण कुछ भी उनमें नहीं हो सकते हैं। फिर आपको उनकी संतान कैसे कहा जाय जिनदेवकी दुहाई है सत्यर कहिये, क्योंकि कहा है
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या पुंसि देदीप्यमानसुभगे झारोग्यता जायते ।. गम्भीरं भववजित गुणनिधि सन्तोषजात चिरं । विख्यात शुभनामजातिमहिमा श्रर्या दारक्षमं ॥ नेत्र करो न भूमिपति होने कुले जायते ! अर्थात- सुन्दर, रूपवान, निरोगी, यरक्षीर स गुणनिधि, सन्तोषी, शुभ्र नामद्वाला कीविया और क आनंद देनेवाला ऐसा पुरुष नकुल में कैसे जन्म ले सकता है ? कदापि नहीं ले सकता।
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वनश्रीभवजी बोले- प्रिये ! तम चिंता मत
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अपना दूर करो। समुद्र किनारे जो जहाज ढहते हैं जनमें एक मनमंजूषा तम्मकी मुन्धी है, जिसकी पहिले तुमसे कह चुका हूं सो तुम जाकर मे सत पूछ लो । वह जानती है, वही तुमसे सब कुड़ेगी 1. यह सुनते ही वह सती शीघ्र ही समुद्र किनारे गई, और! रथनमंजूषा !! कहके वहां पुकारने लगी। तब ज सुनकर विधारा
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हां प्रदेश में मुझसे कौन हैं ? देखो, सही कोट है ? कोही ? बह ब्रहान के ऊपर आकर सुकुमार स्त्रीको स्थाई
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