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________________ tax] श्रीपाल फेरि। मूली होरी 13 राजाकी अशा पांडालोंने श्रीपालकी बांध लिया, और सूली देनेके लिये ले चले। सर्व श्रीपाल सोचने लगे कि मैं चाहूँ तो इन सबकी क्षणभरमै संहार कर डालू, परन्तु ऐसा करने से भी क्या सुकुलीन कहा जा सकता है? कदाि नहीं, इसलिए अब उदयमें बाये हुए कर्मो को सहन करना ही उचित है, जिससे फिर मानेके लिए ये शेष न रहें । दे अभी और क्या होता हैं ? इस तरह सोचते हुए के पांडालो साथ आ रहे थे कि किसी राजमहलकी दासीने यह संब समाचार गुणमालासे जाकर कह दिया। सुमसे ही वह मूर्च्छित हो भूमिपर गिर पड़ी। जब सखियोंने शीतोपचार करके मुख दूर की तो हे स्वामिन्! हे प्राणधार ! करकर चिल्ला उठी, और दीर्घनिश्वास डालती हुई तुरन्त हो श्रीपाल निकट पहुंचा और उन्हें देखते ही पुन मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। जब मुर्छा दूर हुई तो भयनीत मृगोको नाई सजल नेत्रोंसे पतिकी ओर देखने लगी, और आतुर हो पूछने लगी 12 स्वामिन् ! मुझ दासीपर कृपा कर सत्य कहो कि आफ कोन और किसके पुत्र है ? और इन भांहोने आपपर कैसे। यह मिथ्या आरोप किया है ? तब श्रीपाल बोले- "प्रिये ! मेरा पिता भांड और माता मांडिनो और सब कुटुम्दी भांड है और इसकी हाल में साक्षी भी हो चुकी हैं फिर इसमें सन्देह भी क्या है ? तब गुणमाला बोली- 'हे नाथ ! यह समय हास्य करनेका नहीं हैं। कृपय यथार्थ कहिये । पहिले तो मुझसे और हीं कहा था और मुझे उसीपर विश्वास है, परन्तु यह आज में कुछ कुछ विचित्र
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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