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________________ १३२] श्रीपाल पास्त्र । ...... भाँडोका कपट . . . . पश्चात् वे सब मांड़ मिलकर राज्य समा गये, और राजाको यथायोग्य प्रणामकर उन लोगोंने पहले तो अपनी नकल खेल इत्यादि करके राजासे बहुतसा पारितोषिक प्राप्त किया, पावाद चलते समय सब परस्पर मुहीमुह देखकर अंगुलियोम श्रीपालको ओर इशारा करके बतलाने लगे। यहीं ढंग बनाकर, पोडी देर में ज्यों ही राजाकी बोरसे श्रोपाल लोगोंको पानका बीड़ा देने के लिए गये, और अपमा हाप उठाकर बोडा वेने लगे, त्यों ही सबके सब भाप अहहा । घाय भाग्य ! बिछुड़े मिल गये, कहकर उठ पड़े, और श्रीपालको चारों ओर से घेर लिया । कोई बेटा, कोई पोता, कोई पड़पोता, कोई भतीमा, कोई पति इस तरह कह-कहकर कुशल पूछने लगे । और राजाको आशीर्वाद देकर बलया लेने लगे, कहने लगे-- ____ अहा ! आज बड़ा ही हर्शका समय मिला जो हमारा बेटा हाथ लगा । हे नरनाथ ! तुम युग युगतिरों तक जीओ! धन्य हो महाराज, प्रजापालक हो ! तुमने हम दोनोंको आज पुत्रदान दिया है। मह चमस्कार देखकर, राजाने उन मांडोंसे कहा "तुम लोग सच्चार हाल मेरे सामने कहो! नहीं तो सबको एकसाथ शूलीपर चढ़ा दुगा । नीच तिर्लज्जो ! तुम लोगोको कुछ भी ध्यान नहीं है कि किस कुलोन पुरुषको अपना पुत्र कह रहे हो । तब वे मांड हाथ जोड मस्तक मुका दीन होकर बोले-'महाराज दीनानाष अन्नदाता ! यह लडका हमारा ही है । मेरी स्त्रीके दो बालक थे, सो एक तो यही है और दूसरेका पता नहीं है । हम सब लोग समुद्र में एक नावमें गैठे आ रहे थे, सो तूफानसे जहाज फट कम कुलोन 6 रहे हो। तब वे भुका दीन
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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