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________________ लेई", अर्थात् बुद्धिमान है, इसलिए किसीके कहने का समझानेसे क्या हो सकता था? . . .. ठीक है आपत्ति आने पहिले हो बुद्धि नष्ट हो जाती है, धर्म श्रद्धा छूट जाती है. कायरता बढ़ जाती हैं, सत्य चधन नहीं निकलता, विषमकवायें बढ़ जाती है. सोल, संथम, स्था, सन्तोष, विक, साहस आदि गुग और धन आदि सब चला पाता है । सो सेठको भी यही दशा हुई। उसने किसीफा कहना न माना, और मांडों को बुलाकर उन्हें बहुत अव्यका लालच देकर समझा दिया कि तुम राजसभा में जाकर अपना खेल दिखाये. बाद श्रीपालजीके गले लगकर मिलाप करने लगना, और अपना२ सम्बन्ध प्रकट करके अपने साथ घर चलने का आग्रह करना, और राजाके कहने पूछने पर इस प्रकार कहना__महाराज ! हम जहाजमें बैठे आ रहे थे, सो तुफानसे जहाज कट गया, और हम लोग किसी सरह किनारे लगें, सो और सब तो मिल गये, परन्तु केवल दो लड़के रह गये थे । सो छोटा तो यह आज आपके दर्शनसे पाया और एक बेटा इससे वर्ष बडा था अब तक नहीं मिला है। ऐसा राजाको बहुत धन्यवाद देने लगना । इस प्रकार समझाकर जुन भोडोंको सेठने राजसभा में भेज दिया । ~ -
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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