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कुकुमद्वीप में सेठ |
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1. कु. कुमद्वीपमें धवलसेठ
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कुछ दिनों बाद धवल सेठ के जहाज भी चलते२ कु. मी प आये । तब वह वहां डेराकर बहुत मनुष्यों सहित अमूल्यर वस्तुऐं लेकर राजजन करनेके लिए गया। और यथायोग्य सत्कार कर वे चीजें भेंट की । इससे राजा बहुत प्रसन्न हुआ और उसने भी सेठका बहुत सम्मान किया जब इत्र, पान, इलायची बगेरह हो चुकीं तब सेठको दृष्टि यहां पर बैठे हुए गजा श्रीपाल पर पडी । सो देखते ही वह फूलकी नांई कुम्हला गया। दीर्घ निःश्वास निकलने लगे और चित्तामै प्रस्वेद निकलने लगा । सुधि बुधि सब भूल गये परंतु यह भेद प्रकट न हो जाय इसलिए शीघ्र ही अपने आपको सम्हाल कर वह राजासे आज्ञा मांगकर अपने स्थान पर जाया और तुरन्तं ही मंत्रियोंको बुलाकर विचारने लगा कि अब क्या करना चाहिए ? क्योंकि जिसने मेरे साथ बहुत उपकार किये थे, और मैंने उस ही को समुद्र में गिराया था, वह तो अपने बाहुबल से तिरकर यहां आ पहुँचा है और न मालूम कैसे राजासे उसकी पहिचान भी हो गई है ।
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तब तक वोर बोला "हे सेठ ! पुण्यसे क्यार नहीं होता हैं ? वह समुद्र भो तिर आया और राजाने उसे अपनी गुणमाला कन्या भी विवाह दी है ।" यह सुन सेट और भी दुःखो हो गया। ठीक है, दुष्ट मनुष्य किसीकी बढ़ती देखकर सहन नहीं कर सकते है । तिस पर यह तो श्रीपालजीका चोर है सो चोर साहुसे सदा भयभीत होता ही है। वह मारे भय बीर निवासे त्रिकल हो गया और भोजन पान सब भूल
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