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________________ १२८] श्रीपाल चरित्र | सुनकर गुणमाला विस्मय में पड़ गई और वह लज्जित नीचा सिर करके बैठ रही । निज प्रियाकी यह विचित्र दशा देख श्रीपालजी बोले--- प्रिये ! यदि तुमको मेरा विश्वास हो, और सुनना चाहतो हो तो सुनो ! मैं अंगदेश चंनापुरके राजा अरिदमनका पुत्र हूं । पूर्णकर्मत्र रोगाक्रांत हो जानेसे अपने काकाका राज्यभार सौंपकर सातसौ सखों सहित उज्जैन भाया। और वहां के राजा पहूपालको कन्या मैनासुन्दरीसे विवाह किया। उस सतीकी पवित्र सेवा और सिद्धचक्र व्रतके प्रभाव से मेरा और सब. वोरोंका वह रोग मिटा । वहांसे चलकर मैंने एक विद्याधरको उसकी विद्या साधकर दे दी, और उससे जलतारिणी तथा शत्रुनिवारी दो विद्यायें भेटस्वरूप स्वीकार कर, मैं आगे चला । पश्चात् धवलसेठके पांचसो जहाज समुद्र में अटक रहे थे सो चलाये, तब उसने लाभका दशांश भाग बचन देकर अपने साथ चलनेको आग्रह किया सो उसके साथ चल दिया। रास्ते में एक लक्ष चोरोंको वश किया, और उनने रत्नसहित सात जहांज भेंट किये सो लेकर हंसद्वीपमें आया । वहां पर जिनालय के वज्रमयी कपाट खोले और वहांके राजाकी कन्या रवनमंजूषाको परिणकर तथा उसे साथ लेआगे चला सो कर्मयोगसे समुद्रमें गिर गया | परमेष्ठी मंत्रका आराधना करता हुआ जिनधर्म के प्रभाव से यहाँतक आ पहुंचा हूँ । हे प्रिये ! यही मेरी कथा है । तब पच .. गुणमाला स्वामी के मुखसे उनका सब वृत्तांत जानकर बहुत प्रसन्न हुई और ये (श्रीपालजो) अपनी चतुराई से थोड़े ही समयमें राजा तथा प्रजाके प्रिय हो गये ।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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