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श्रोपाल चरित्र ।
समुद्रको निज भुजाओंसे तिरकर यहां आयेगा, वहीं इसका वर होगा।" उसो दिनसे राजाने हम लोगोंको यहां पहरे पर रक्खा है । सो हमारे पुण्योदयसे आज आप पधारे हो, आपका स्वागत है ! हे प्रभो ! चलिर और अपनी नियोगिनीको प्रसन्नतापूर्वक विवाहिये ।
इस तरह अनुनय विनयकर कितने ही अनुचर श्रोपालजीका नगरकी ओर चलनेको विनती करने लगे। और कितनोंने जाकर शीघ्र ही राजाको खबर दी ! सो राजाने हर्षित होकर उन लोगोंको पारितोषिक दिया पश्चात् राजा स्वय उनकी अगवानीके लिए गये और उबटन तेल, फुलेल आदि भेजकर श्रीपालजीको स्नान कराया, और सुन्दर वस्त्राभूषण धारण कराकर बडे उत्साह और गाजे-बाजेसे मंगल गान पूर्वक उनको नगरमें लाये । घरोंघर मंगल गान होने लगा। तथा राजाने शुभ मुहूर्तमें निज पुत्री गुण मालाका पाणिग्रहण श्रोपालजोसे विनायक यंत्रकी पूजा अभिषेक और हवन संस्कारादि कराकर अग्नि व पंचोंकी साक्षी पूर्वक करा दिया तथा बहुतसा दहेज नगर, ग्राम, हाथी, घोड़ेसवार, प्यादे और वस्त्राभूषण आदि देकर कहने लगे___हे कुमार ! मैं आपकी कुछ भी सेवा करनेको समर्थ नहीं हूँ । मैंने तो आपकी सेवाके लिए मात्र यह सेविका (पुषीको दिखाकर) दी हैं सो अथं और कामसे इसका पालन काजिये और तथा मुझते कुछ सेवामें कमी हुई हो, सो क्षमा कोजिये और सदैव मुझपर कृपादृष्टि बनाये रखिये ।"
तब श्रीपालने कहा-हे राजन ! मैं तो एक विदेशी पानी में बहता हुआ निराधार, कर्मोदयसे यहां आया था ! सो आपने