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धवलसेठ रयन मंजूषाके पास और देवसे दंड । [ १२३
बसरदसे जिस किसीने मेरी सहायता की हो, वह इन्हें दया करके छोड़ दे । यह सुनकर उस जलदेवने उसे शिक्षा देकर छोड़ दिया, और रमनमषाको धेर्य देकर बोला- "हे पुत्री ! तू चिन्ता मत कर थोडे ही दिन में तेरा पति तुझे मिलेगा, और वह राजाओंका राजा होगा । तेरा सम्मान भी बहुत बढ़ेगा | हम सब तेरे आसपास रहनेवाले सेवक है, तुझे कोई भी हाथ नहीं लगा सकता है ।
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इस तरह वह देव घवलसेठको उसके कूकमका दण्ड देकर और रयनमंजूषाको धेर्य बंधाकर अपने स्थानको गया । और सतीने अपने पतिके मिलनेका समाचार सुनकर, व शील रक्षा होनेसे प्रसन्न होकर प्रभुकी बड़ी स्तुति को, मौर अनकर, कनोदर का उतीत करने लगी। वह पापी धवलसेठ लज्जित होकर उसके चरणों में मस्तक झुकाकर बोला- हे पुत्री ! अपराध क्षमा करो। मैं बडा अधम पापी हू और तुम सच्ची शोलघुरन्धर हो । तक सतीने उसको भी क्षमा किया । सत्य है
'उत्तमे क्षणिकः कोपो, मध्यमे महरद्वयं । अधर्मस्य अहोरात्र, नीचस्थ मरणान्तकम् ॥'
अर्थात् -- उत्तम पुरुषोंका को क्षणमात्र (कार्य होने तक ), मध्यम पुरुषोंका दो प्रहर ( भोजन करने तक ), जघन्य पुरुषोंका दिन रात और नीचोंका मरने तक तथा जन्मान्तों तक भी रहता हैं ।