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पौवाल परिव । धवला तो क्या कोट धवला भी उसका कुछ नहीं कर सकते ये । इसीलिए उसके दृढ़ शोलके प्रभावसे वहाँ तुरन्त ही जलदेव आकर उपस्थित हुआ और उसने धवलसेठको मुश्के बांध लों तथा गदासे बहुत मार लगाई। बालुरेत आंखों में मर के मुंह काला कर दिया, और मुहमें मिट्टी भर दी, तथा और भी अनेक प्रकारसे निंद्य कुवचन कहे ।
तात्पर्य-उसको बड़ी दुर्दशा की, और बहुत दण्ड दिया। सब लोग एक दूसरेका मुह ताकने लगे, परन्तु बतायें किससे? क्योंकि मार ही मार दिख रही थी, परन्तु मारनेवाला कोई नहीं दिखता था, गाता मंत्री लोग यह सोचकर कि कदाचित् यह देवी चरित्र है और इस सतीके धर्मके प्रभावसे हुआ है, अतएव रयनमंजूषाके पास आये, और हाथ जोड़कर खड़े हो प्रार्थना करने लगे।
हे कल्याणरूपिणी पतिव्रते ! धन्य है तेरे शोलके माहात्म्यको! हम लोग तेरे गुणोंकी महिमा कहनेको असमर्थ है। तू धर्माको घोरी और सच्ची जिनशासनकी भक्त और व्रतोमें लवलीन है। तेरे भावको इस दुष्टने न समझकर अपनी नोचता दिखाई । अब हे पुत्री दया कर! इस समय केवल इस पापीका ही विनाश नहीं होता है, परन्तु हम सबका भी सत्यानाश हुमा हैं । हम सब तेरे ही शरण है, हमको यचा, उन लोगों के दीन बचनोंको सुनकर सतीको दया आ गई । इसलिए वह क्रोधको छोड़ खडी होकर प्रभुको स्तुति करने लगी
"हे बिमनाय ! पत्य झे! जो ऐसे कठिन समयमें भापके प्रभावसे इस मामाकी धर्मरक्षा हुई। हे प्रमो! तुम्हारे