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श्रीपाल चरित्र |
TEPUL
कुल
और
क्या होलीको सेवे । सो यह अन्याय विधि भी न देख सका और उसने तुम्हारा पल्ला उससे छुड़ा दिया। अब तुम प्रसन्न होओ मेरी ओर देखो। तुम मेरी स्त्री बनो और मैं तुम्हारा भर्तार बनूं में तुमको अपनी सब स्त्रियों में मुख्य बनाऊंगा, और स्वप्न में भी तुम्हारी tear विरुद्ध कमी न होऊंगा । अब तुम डर मत बरी । शीघ्र ही अपना हाथ मेरे गले में डालो, और अपने अमृतमई वचनों से मेरे कानों व मनको प्रफुल्लित करो घित तुम्हारे बिना व्याकुल हो रहा है ।
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हे कल्याणरूपिणी ! मृगनयनी ! कोमलांगी ! आओ और अपने कोमल स्पर्शसे मेरा शरीर पवित्र करो । देखों, ज्योंर घड़ी जाती हैं, त्यों योवनका आनन्द कम होता जाता है। कहा भी है कि
मनुज जनमको पाय कर, व्यर्थ गमायो जन्म तिन खबर नहीं हैं पलककी जिन छोडे सुख हालके, उनसे मूरख कौन || सदा न फूले केतकी, सदा न श्रावण होय ॥ सदा न यौवन थिर रहें, सदा न जावं काय ॥
कियो न भोग विलास । कर आगाधी माथ ॥ कलको जानें कौन ।
इसलिए है प्यारी ! मुझे प्यासेको प्यास बुझाओ । हम जानते हैं कि नारी बहुत कोमल होती हैं, पर तुमको क्यों दया नहीं आती? क्यों तरसा रही हो ? तुम तो अतिचतुर व बुद्धिमती हो। तुम्हें इतना इठ करना उचित नहीं है । जो कुछ कहना हो दिल खोलकर कहो मैं सब कुछ कर संकता हूं, मेरे पास द्रव्यका भी कुछ पार नहीं हैं। राजाओं के यहां जो सुख नहीं, सो मेरे यहां है, मेरे ऐश्वर्य के सामने इन्द्र