SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ir श्रीपाल चरिण । अंगदेश चंपापुरीका वर्णन इसी जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्रमें जो यह आर्य खण्ड है इसके मध्य एक अंगदेश नामका देश है और उसमें चंपापुर नामका एक नगर है। इसी नगरके समीपी उद्यानसे श्री वासुपूज्य स्वामी बारहवें तीर्थंकर निर्वाण पधारे है । यह नगरी अत्यन्त रमणीक है । चारों ओर वन उपवनोंसे सुशोभित है । उन बनोंमें अनेक प्रकारके वृक्ष अपनी स्वभाविक हरियालो लिये पवनके झंकोरोंसे हिल रहे हैं। मन्दसुगंध वायु बहा करती है । कहोपर कल्लोले करते हुए नदी नाले बहुते हैं। जिनमें अनेक जातिके जलचर जीव काड़ा कर रहे हैं । कहीं वृक्षोंपर पक्षी अपने अपने घोंसलोंमें बैठ नाना प्रकारकी किल्लोलें कर रहे हैं। वे कभी फड़कते, कभी लटककर चुह-चुहाते हैं । बन्दर आदि वनचर जोव एक वृक्षसे दूसरे और दूसरेसे तीसरेपर प्रमुदित हुये कूद रहे हैं । घाम औरों ओर लहरा रही है । वन-वेलोंको तो कहना ही क्या है ? जिस प्रकार लज्जावती स्त्रीके चहूँ ओर वस्त्र माच्छादित रहते हैं और उसका बदन (शरीर ) रूप, रंग कोई नहीं देख सकता है, उसी प्रकार उन्होंने वृक्षोंको चारों ओरसे ढांक लिया है । कहीं हाथियोंके समूह अपनी मस्त चालसे विचर रहे हैं, तो कहीं मग बिचारे सिंहादि शिकारी जानवरोंके भय से यहां वहां दौड़ते फिर रहे हैं, कहीं सिंह त्रिवाड़ रहे हैं, कहीं पुष्पवाटिकाओं में नाना प्रकार के फूल जैसे चम्पा, चमेली, जुही, मचकुन्य, मोगरा, मालती, गुलाब आदि खिल रहे हैं । जिनपर सुगन्धके लोभी भौरा गुंजार कर रहे हैं, कहींपर बागोचेमें नाना प्रकार के फल जैसे आम, जाम, सीताफल, रामफल, श्रीफल, केला, दाडिम जामुन आदि लग रहे हैं। जलकु डोंमें मछलियां किल्लोलें कर यहाँ हैं, सरोवर में अनेक भांतिके * '
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy