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________________ बीपाला सो मम इस योवनको पाकर व्यर्थ नहीं खो देना चाहिये, यौवन गया हुआ फिर नहीं मिलता है। केवल पछतावा हो हाय रह जाता है। जिन्होंने तरुण अवस्था पाकर विषय नहीं सेषा, उनका नरअन्म न पानेके बराबर है। तू अब 'बीपाल का शोक छोडकर इस परम ऐश्वर्यवान, रूपवान और धनवान सेटको ही अपना पति बना । ___परेके पीछे कोई मर नहीं जाता । मर गया तो जोका कंटक शूटा । ऐसी लाजसे क्या लाभ, जो जीवनके गानंदपर पानी डाले । और वह तो धवन से ठक} नौकर था, सो जब माझी मिल जाय. तो नौकरको क्या चाह करना ? मुझे तेरी दशा देखकर बहुत दुःख होता हैं। अब तू प्रसन्न हो, और सेठको स्वीकार कर तो मैं अभी जाकर उसको भी राजी किये आनो हूं। ___मैं वृद्ध हुई हूं इसलिए मुझे संसारका अनुभव भलेप्रकार है। नु अभी भोलीभाली नादान लड़की है, इसलिए मेरे वचन मानकर तू मुखसे काल विता। इत्यादि अनेक प्रकारसे उस क्लिा दामीने समझाया, परन्तु असे काले कम्बलपर और कोई रंग नहीं चढ़ता है उसी प्रकार जरा सतोके मनपर एक बात भो न जंची, अर्थात् उस पापिनो दुतोका जादू इसपर न चला। वह कुलवंती सती उसके ऐसे निंद्य वचन सुनकर को से कांपने लगी, और डपटकर बोली-चुन रह, दुष्टा पापिनी !
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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