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________________ घवलसेठका रपनमंजूषाको बहकाना । ११५ शेरी जोमके सौ दुकडे क्यों नहीं हो जाते ? धरलसेठ तो मेरे पतिका धर्म-पिता और मेरा श्वसुर (पिताके समान ) है । श्या पुत्री और पिताका संयोग होता हैं ? पापिनी ! हुने जन्मांतरोंमें ऐसे २ नोच कर्म किये हैं जिससे रण्डा कुट्टिनी हुई हैं और न मालूम अब तेरी और क्या गति हो ? इस जन्ममें रयनमंजूषाका पति केवल श्रीपाल ही है । और पुरुष मात्र, उसको पिता व भाई तुल्य हैं। हट जा यहाँसे, मुझे अपना मुह मत दिखला नहीं तो इसका बदला पावेगी । इस प्रकार सुन्दरीने अब उसे धुडकाया तब बह अपनासा मुह लेकर कांपती हुई पापो सेठके पास आई, और बोली "हे सेठ ! वह मेरे वशको नहीं हैं मुझे तो उसने बहुत अपमान करके निकाल दिया। जो थोड़ी देर और ठहरती, तो न मालूम यही मेरी क्या दशा करतो ? इसलिए आप जानो व आपका काम जाने । मुझसे यह काम तो नहीं हो सकता । दूती ऐसा उत्तर देकर चली गई।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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