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श्रोपाल चरित्र । सिद्धचक्रका वर्णन कौन होगा ?
हां निर्दयो कर्म ! तूने कुछ भी विचार न किया ! मुझ "निरपराधिनीको क्यों ऐना दुःखद दुःख दिया ? हाय ! यह
आयु स्वामोको गोदमें हो पूरी हो गई होतो, तो ठोक था • अब यह संसार भयानक वन सरोखा दिखता है। हे त्रिलोको. · नाथ ! सर्वज्ञ प्रभो ! हे वोत राग स्वामिन् ! मेरे पति को सहायता कांजिये ! हे सिद्ध भगवान् ! आपके आराधन मात्र वनमयो किवाड खुल गये थे, सो इस संकट में भी .. स्वामोको रक्षा कोजिये ! स्वामो के निमित ये प्राग कुछ भो
वस्तु नहीं है । हाय ! मुझे नहीं मालूम कि मैंने ऐसे कोन कर्म किए थे कि जिससे स्वामांका वियोग हुआ? क्या मैंने पूर्व जन्ममें परपुरुषकी इच्छा को थी ? या पति-आज्ञा ‘मंग को थो? या किसोका व्रत भंग करवाया था ? जिनधर्माको निन्दा को थी ? या गुरुको अविनय को थी? या किसोको पतिवियोग कराया था ? या हिमामय धर्मका सेवन किया था ? या कुगुरु या कुदेवको भक्ति को थी ? या अपना व्रत भंग किया था? या असत्य भाषण किया था? . या कन्दमूल आदि अभक्ष्य भक्षण किया था? हाय ! कौनसा अशुम उदय आया कि जिससे प्राण प्यारे पतिका वियोग हुआ? हे स्वामिन् ! आओ, दासीको खबर लो।
देखो, मैनासुन्दरीसे आपका वायदा था कि बारह वर्षामें आऊगा, सो क्या भूल गये ? नाथ ! मुझपर नहीं तो उन्हींपर सहो, दया करो ! क्या करू', और किस तरह धैर्य धरू ? अरे, कोई भी मेरे प्राणप्यारे भारको कुसल मुझे लकर सुनाओ? हे समुद्र ! तू म्यामीके बदले मुझे ही लेकर यमपुर पहुँचा देता तो ठोक था ! स्नामोके विता मेरा जोवन व्यर्थ है। मैं जाकर अब क्या करूंगा? इच्छा होती है कि मैं
सेवन कियातवियोग कराया गुरुको अविना था ? जिन