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समुद्र पतन ।
[११ तो श्रीपालसे बिगाड़ ही क्या था, वह तो धबल जैसे कृष्टहृदय स्वाथियोंका कांटा ही थे सो निकल गये । अस्तु । ___किसीको कुछ भी हो, परन्तु स्त्रियोंको तो शरण-आधार पति के बिना संसार अधकारमय ही हो जाता हैं, पति के बिना सुन्दर सुकोमल तेज भी विषम कंटक समान चुभती है । सुन्दर २ वस्त्र और आभूषण कठिन बन्धनोंसे भी अधिक दुःख देनेवाले प्रतीत होते हैं। संगीत आदि मधुर स्वर सिंहको भयानक गर्जनासे भी भयानक मालूम होते हैं, षट्रसपूरित सुगंधित मिष्ट भोजन हलाहल विष तुल्य मालूम पड़ता है । यथार्थ में पतिविहोन स्त्रियों का जीवन पृथ्वी पर अर्धदाच जेवरीके समान है। हाय ! जिस समय उस सुकुमार अबला पंचनामा पह सुना, कि मामी समुद्र में गिर गये हैं, उसी समय वह बेसुध हो भूछित होकर भूमिपर गिर पडो ।
मालूम होता था कि कदाचित् उसके प्राणपखेरुः ही इन विनाशोक शरीररूपी घोंसले से विदा लेकर सदाके लिये चले गये हैं, परन्तु नहीं अभी आयु कर्म निःशेष नहीं हुआ था !
और कर्मको पुछ अपना और खेल भी दिखाना था इसीसे वह जोवित रह गई। ___ सखा जनोंने शीतोपचारकर मुळ दूर को तो सचेत होते ही स्वामिन् ! इस अबलाको छोड़कर तुम कहाँ चले गये ? तुम्हारे बिना यह जीवनयात्रा कैसे पूरी होगी ? हे नाथ ! अब यह अबला आपके दर्शनकी प्यासी पपोहाको नाई व्याकुल हो रही है । हे कोटीभट्ट ! हे कामदेव ! हे कुलकमल दिवाकर ! तुम्हारे बिना मुझे अब एकर पल भी जैन नहीं पड़ती हैं । हे जीवदया-प्रतिपालक प्राणेश्वर ! दासीपर दयारष्टि करो । मेरा चित्त अधीर हो रहा है । हे नाथ !