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श्रीपाल चरित्र। लगे। इतने ही में श्रीपालजीको खबर लगो, सो वे तुरन ही उठ खड़े हुए और कहने लगे-" अलग होओ ! यह क्या है ? क्या है ? कहने का समय नहीं । चलकर देखना और उसका उपाय करना ही चाहिये। ऐसा कहकर वे आगे बढ़कर शीघ्र ही मस्तुलपर जा खड़े हुए और बड़ी सावधानीसे चारों ओर देखने लगे, परन्तु कहीं भी कुछ दृष्टिगोचर नहीं हुआ। इतने में नोचेसे दुष्टोंने मस्तूल काद दिया. जिससे वे जातको दो समुद्र में माप, और लहरा में नीचे होने लगे। यहां जहाजों में कोलाहल मब गया, कि मस्तूल टूट जानेमे श्रीपालकुमार समुद्र में गिर पड़े है। और न जाने कहां रह गये? उनका पता नहीं लगता, जोषित है या मर मये? इस प्रकार सबने शोक मनाया, और धवलसेठने भो बनावटो शोक करना आरम्भ कर दिया । __वह कहने लगा – 'हाय कोटो मट्ट श्रोपाल ! तुम कहां चले गये ? तुम्हारे बिना यह यात्रा कैसे सफल होगो ? हाय ! इन भारी जहाजोंको मिन भुजबलसे चलानेवाले, लक्ष चारोंको बांधकर मुझे उनके बन्धन से छुड़ाने वाले, हाय ! कहां चले गये । है कुमार ! इस अलर वयमें असीम पराक्रम दिवाकर क्यों चले गये ? तुम बिना, विपत्तामें कौन रक्षा करेगा ? हा देव ! तूने हमको अनमोल रत्न दिखाकर को छोन निया ? इत्यादि उपरो मनसे वनावटा रोना रोने लगा। अन्तरङ्गमें तो वह हर्ष के मारे फूलकर कुप्पा हा रहा था परन्तु सघमें और बहुतोको तो सचमुच हो बहुत दुःख हुआ। सो ठाक है । कहा भी है___ " जिसका छो गिर जाय, सो हो लूखा जाय ।"
सो औरोंको सच्चा दुःख हो या झूठा, परन्तु धवलसेठको - बनावटो शोक था परन्नु औरों का सच्चा था, क्योंकि उनका