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________________ समुद्र पतन । [१०७ अधिक विठलो होती है। देखो इसका हट छोड़ो ! हम लोग आज्ञाकारी है, जो आज्ञा होगी सो करगे, परन्तु स्वामीकी हानि और लाभकी सूचना कर देना यह हमारा धर्म है | आप हम लोगोंकी बात पीछे याद करेंगे । इत्यादि बहुत कुछ समझाया, परन्तु जब देखा कि वह मानता ही नहीं हैं तब वे लाचार होकर बोले महष्ट प्रबल है । सेठजी ! इसका केवल एक ही उपाय है कि मरजियाको बुलाकर साध लिया जाये, कि जिससे वह एकाएक कोलाहल मचा दे कि 'आगे न मालूम कोई जानवर है, या बार है, या कुछ ऐसा ही देवी चरित्र है दोड़ो, उठो, सावधान होओ" सो इस आवाज को सुनकर जब श्रीपाल मस्तूलपर चढ़कर देखने लगे तब मस्तूल काट दिया जाय। इस तरह के समुद्र में गिर जायेंगे और आपका मनवांछित कार्य सिद्ध हो जायगा । अन्यथा उसके रहते उसकी प्रियाका पाना मानों अग्निमें से बर्फ निकालना हैं । मंत्रियोंका यह विचार उस पापीकों अच्छा मालूम हुआ । और इसलिए उसने उसी जगह मरराजवाको बुलाकर बहुत प्रकार प्रलोभन देकर साध लिया । ठीक है, पुरुष स्वार्थवश आनेवाली आपत्तियोंका विचार नहीं करते । निदान एक दिन अवसर पाकर मरजियाने एकाएक चिल्लाना आरम्भ किया कि-बोरी! सावधान होमी ! सामने भयके चिह्न दिखाई दे रहे है । न मालूम कोई बड़ा जल जन्तु हैं, या चोरवल हैं, अथवा ऐसा ही और कोई देवी चरित्र है, तूफान हैं, या भंबर है, कुछ समझ में नहीं जाता । इस प्रकार चिल्लाने से कोलाहल मच गया। सव लोग यहां तहां क्या हैं? क्या है। करके चिल्लाने और पूछने 4
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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