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भोपाल परित्र ।
गोद में उठा लिया । शोतोपचार कर जैसे तैसे मूळ दूर की, तो भो उसे अत्यन्त वेदनासे व्याकुल पाया। तब श्रीपालने मधुरः बोल पूछा-है तात ! आपको क्या वेदना है ? कृपाकर कहो । तब दुष्टने बात बनाकर कहा-हे धीर पुरुष ! मुझे वायुका राग है। सो कभी २ उठकर मुक्त पीडा देता है । और कोई विशेष कारण नहीं है। साधारण औषघोपचार हो ठोक हो जायगा । तब धीपाल उसे धैर्य देकर और अंगरक्षकों को ताकीद करके अपने मुकाम पर चले गये। पश्चात् मंत्रियोंने पूछा
हे सेठ ! कृपाकर कहो कि यह रोग कैसे मिटे, और क्या उपाय किया जाय? तब सेठ निर्लज्ज होकर बोला-- मंत्रियो ! मुझे और कोई रोग नहीं है। केवल कामविरहकी पीड़ा है, सो यदि मेरे मनको चुरानेवाली वह कोमलांगी मगनयनी रयनमंजूषा नहीं मिलेगी, तो मेरा जीना कष्टसाध्य होगा। ___मंत्रियोंको सेठके ऐसे वचन घणित शब्द सुनकर बहुत दुःख हुआ। वे विचारने लगे कि सेठकी बुद्धि नष्ट हो गई हैं। इस कुबुद्धिका फल इसको और समस्त संघको भयकारी प्रतीत होता है। यह सोचकर उन्होंने नाना प्रकारको युक्तियों द्वारा मेठको समझाया। परन्तु उस दुष्टने एक भी न मानी।. वह निरन्तर बही शब्द कहता गया । निदान लाचार होकर मंत्रियोंने कहा कि सेठ ! यदि आप अपना हठ न छोड़ेगे, और इस घृणित कार्यका उद्यम करेंगे तो स्मरण रखिये, परिणाम अच्छा न होगा।
क्योंकि रावण जैसा त्रिखण्डी प्रतिनारायण और कोचक सादिको कथाएं शास्त्रोंमें प्रसिस है। परस्त्री सपिणीसे भी