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धीपाल चरित्र ।
कनककेतु, विनयपूर्वक पूछा--"हेप्रमो! यह पुरुष कौन है ? और किस कारण यहां आया है ?" तब श्रीगुरुने कहा
यह अंगदेश चम्पापुर नगरके राजा अरिदमन तथा उसकी रानी कुन्दप्रभाका पुत्र भोपाल है। जब इसका पिता कालवा हो गया, तब यह राजा हुआ परन्तु इसको पूर्वसंचित अशुभ कर्मोके योगसे सातसो सखों सहित कोढ रोग हो गया, जिससे प्रजाको भो दुर्गधिसे बहुत पोडा होने लगी। सो जब प्रजाकी पीडाका समाचार इसके कान तक पहुँचा, जब इस दयालु प्रजावत्सल धीरवीरने अपने काका वीरदमनको राज्य देकर सब सखों समेत बनका मार्ग लिया, और फिरते२ उज्जैनो नगरी मालवदेशमें आया। वहां नगरके वाहिर उद्यानमें डेरा किया। सो वहांके राजा पहपालने इसके पूर्व पुण्यके उदयसे इससे संतुष्ट हो, अपनी -पुत्रो मौनाकुमारोके भाग्यको परीक्षा करने के लिये वह गुणरूपवती सुशील कन्या इससे ब्याह दी।
बह कन्या सच्ची सती और धर्मात्मा थी, इसलिए उस विदुषो कन्याने अपने पिताके द्वारा पसंद किये हुवे इस कोढी बरको सहर्ष स्वीकार कर लिया, और अपने शुद्ध चित्तसे अतिसेवा तथा उपचार कर स्वकर्तव्बका पालन किया, तथा अष्टान्हिका (सिद्धचक्र) नत भी किया जिसके प्रभावसे इसको शीघ्र आराम हो गया । अर्थात् हे भव्य ! वह नित्य श्री जिनदेवको पूजनाभिषेक करके गंधोदक लातो, और सात सौ वीरों सहित इस पर छिड़कती थी, और निरन्तर सिद्धचकका आराधन करती हुई शीलगत की भावना भाती धो, जससे इसका कोढ़ थोडे ही दिन में चला गया। और इसका वरोर जैसा तुम देख रहे हो सुन्दर स्वरूपवान हो गया।