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________________ श्रीग: रित्र । धर्म, परायण और पतिङ्गता थो। और इनके वारिकोण, अभयकुमारादि बहुतसे गुणवान पुत्र थे ।। ___ तात्पर्य यह है कि सब प्रकारसे राजा प्रजा अपने २ संचित पुपका भोर करके भी आगेको पुण्योपार्जन करने में किसो प्रकार कमी नहीं करते थे। अर्थात् दान पूजादि गृहस्थोचित षट्कर्मोमें तथा धर्ममें भो पूर्ण योग देते थे। एक समय नब राषा अंणिक राज्य सभामें सिहासनारूह थे, उसी समय वनपाल (माली) ने पाकर छहों अतुके फल फल राजाको भोट किये और प्रार्थना की कि हे नरेन्द्र ! "विपुलाचल पर्णत' पर चतुविशति तोचकर श्री महाबीस स्वामी समवशरण सहित पधारे हैं । ये सब फल फूल उनके ही प्रभावसे बिना ऋतु आये फले और फले हैं। चारों और कूप तड़ाग और सरोवर भरे हुए दृष्टिगोचर होते हैं । बनके सब जाति विरोधो जीव जैसे-सिंह और बकरी, मूसा और बिलाब आदि परस्पर मैत्री भावसे बैठे हैं। हे स्वामी ! वहां दिन-रातका भी छुच्छ भेद मालूम नहीं पहता है, ऐसी अद्भुत शोभा है, जिसका वर्णन होना कठिन है और वहां सुर नर पशु सभी दर्शन करके आत्मकल्याणका मार्ग ग्रहण कर रहे हैं। ___ यह समाचार सुनकर राजाको अत्यात मानन्द हुआ और उन्होंने तुरन्त अपने शरीर परके वस्त्राभूषण उतारे और वनमालीको दिये, तथा आसनसे उठकर परोक्ष नमस्कार किया. और नगरमें आनन्दभेरी (मुनादी) दिवाई कि सब नरनारी श्री वीर भगवान के दर्शनको पधारें । इस प्रकार राजा स्वयं भी चतुरंग सेना सहित हर्षका मरा चेलनादि रानियों सहित । समवसरणमें अंदनार्थ गये । वहां जाकर प्रथम ही भगवान को । अष्टांग नमस्कार करके स्तुति करने लगा ।
SR No.090465
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeepchand Varni
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size3 MB
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