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ग्रंप (चरित्र) उनका कारण
[५ मातुषोत्तर पर्गत है । इससे यह आधा दीप और धातको खण्ड तथा जम्बूद्वीप मिलकर अढाई द्वीप ४५ लाख महायोजनके घासवाले हैं।
इतना ही मनुष्य लोक है । यहीसे संसारी जीव कर्मको · नाश करके मुक्त हो सकते हैं । इसके सिवाय इसी प्रकार दूने २ विस्तारवाले समुद्र उसके आसपास द्वीप, उसके आसपास समुद्र आदि असंख्यात दीप ममुद्र हैं जिनमें सबसे अन्तका द्वीप तथा समुद्र स्वयंभरमण हैं । इस अन्तके आशे ोप और समुद्र में क्रमशः पंचेन्द्रिय थलचर जलचर पशु होते हैं । यह सब तिर्यकलोक है । मलाई द्वीपसे परे मनुष्योंका गमनागमन नहीं है ।
ऐसे इस मध्यलोक के मध्यवर्ती नाभिके तुल्य इस जम्बूद्वीपमें वीचोबीन सदन मे हामका लावा गीत है, जिसके दक्षिण उत्तर छह कुलाचल पर्वत हैं 1 उनसे इसके सात क्षेत्र हो गये हैं। उन क्षेत्रों में से दक्षिण दिशामें धनुषाकार यह भरतक्षेत्र है । जिसके बीच में कोताहय पर्वत तथा महागंगा और सिन्धु नदो बहनेसे प्राकृतिक छह भाग हो गये है । सो आसपास तशा जपरके मिलकर ५ म्लेच्छ और दक्षिण भागमें १ आर्यखण्ड है । उसके मध्य भागमें मगध देशा है जिनमें एक गरगृही नामकी नगरी है । यह नगरी अत्यन्त शोभायमान और धन जनकर पूर्ण है, जहां बडे २ बिशाल मन्दिर बने हुये हैं । तथा जो वन उपवन, कोट खाई, ताल, भाबड़ो अादिसे अति रमणोक मालूम होती है।
यहां महामंडलेश्वर महाराज श्रेणिक राज्य करते थे। यह राजा अत्यन्त नीतिनिपुण, न्यायी, प्रजावत्सल, प्रतापी और धर्मात्मा थे । इनके राज्यमें दोनदुःखी पुरुष दृष्टिगत ही नहीं होते थे। इनको मुख्य पटरानी चेलना बहुत ही