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________________ श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद] [ ७३ तथा त्रैलोक्यसारञ्च षड्लेश्यास्तत्व सप्तकम् । गुणस्थानादिकं सर्व प्रस्पष्टं सजगाद सः ॥१५०।। अन्वयार्थ-(च) और (तथा) उसी प्रकार (प्रैलोक्यसारंतत्वसप्तकम् ) तीन लोक के सारभूत सात तत्वों को (पडलेश्या) छ: लेश्याओं को (गुणस्थानादिकं) गुणस्थान मार्गणा आदि (सर्व) सभी को (सः) उन जिनेन्द्र प्रभु ने (प्रस्पष्टं) पूर्ण स्पष्ट रूप से (सजगाद) निरुपण किया। अर्थ-पुनः उन वीर भगवान् ने छह लेश्या सात तत्व, गुणस्थान आदि का लक्षण विस्तार पूर्बक स्पष्ट बतलाया। भावार्थ--भगवान महावीर स्वामी ने अपनी दिव्य ध्वनि में छह लेश्याएँ १ कृष्ण, २ नील, ३ कपोत, ४ पीत, ५ पम, ६ शुक्ल, इसी प्रकार सात तत्त्व १ जीव, २ अजीव, ३ प्रास्त्रव, ४ बन्ध, ५ संवर, ६ निर्जरा और मोक्ष एवं पूर्वोक्त १४ मुणस्थान, १४ मार्गणाएं आदि का उपदेश किया । इनका स्वरूप ज्ञात कर भव्य जीव संसार सागर से पार होने में समर्थ होते हैं । क्योंकि "विन जाने ते दोष गुणन को कैसे तजिये गहिये" । १. जिसमें चेतना पायी जाय वह जीव है । २. ज्ञान दर्शन रहित जड़ पदार्थ अनीव कहलाता है । ३. आत्मा और कर्मों के संयोग से जीव के शुभा-शुभ भावों से कर्मों का आना प्रास्रव है। ४. कषायों का निमित्त पाकर आये हुय कर्मों का आत्म प्रदेशों के साथ दूध पानी के समान मिल जाना, संश्लेष होकर ठहरना बंध कहलाता है। ५. व्रत ५ समीति, ३ गुप्लि, दशधर्मादि द्वारा प्राते हुए कमों का निरोध करना रोकना संवर कहलाता है। ६. पूर्वबद्ध कर्मों का प्रात्मा से एक देश क्षय होना अलग होना निर्जरा कहलाती है। -- ७. सम्पूर्ण कर्मों का आत्मा से विश्लेष-पृथका हो जाना मोक्ष है। इस प्रकार से सात तत्व हैं। पहले लिखा जा चुका है कि 'कषायों से अनुरक्जित योगों की प्रवृत्ति को लेश्या कहते हैं । कषायों की तीव्रतम, तीव्रतर ओर तोत्रता एवं मन्द, मन्दतर और मन्दतम परिणमन के अनुसार लेश्याएँ छ भागों में विभक्त हो जाती हैं, इनमें प्रथम तीन कृष्ण नील और कपोत अशुभ लेश्याएं हैं तथा पौत, पद्म, और शुक्ल ये ३ शुभ लेश्याएँ हैं। अशुभ सर्वथा त्याज्य हैं शुभ भी क्रमशः परिणाम विशुद्धि के अनुसार गुणस्थान वृद्धि होते हुए निवृत्त होती जाती हैं । १३३ गुणस्थान में उपचार मात्र से रह जाती हैं, और १४वें गुणस्थान में सर्वथा लेश्या का
SR No.090464
Book TitleShripal Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages598
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size16 MB
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